ग्वालियर। भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर की पूर्व रियासत के वारिस होने का फायदा सियासत में भले मिला हो, लेकिन ग्रेजुएट होने के बाद जब उन्होंने मर्लिन लिंच और मॉर्गन स्टेनली जैसी कंपनियों के लिए काम किया तो वहां सिंधिया रियासत के महाराज होने का कोई फायदा नहीं नहीं मिला। खुद सिंधिया ने बताया कि ग्लोबल प्लेटफार्म पर इन कंपनियों के लिए काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि यहां किसी को मतलब नहीं था कि कौन रॉयल फेमिली से है और कौन गरीब, यहां तो रिजल्ट देकर ही खुद को श्रेष्ठ साबित करना पड़ा, सिंधिया होकर नहीं।

ग्वालियर की सिंधिया स्टेट के मौजूदा मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया का 1 जनवरी को जन्मदिन है, इस दिन वे 50 साल के हो जाएंगे। इस अवसर पर  khabarkhabaronki.com उनके जीवन से जुड़े कई पहलुओं को शेयर कर रहा है।

देहरादून के दून स्कूल में पढ़े ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक इंटरव्यू में कहा था कहा था मेरे हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले दिन बहुत अच्छे थे। सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि मुझे दोनों वर्ल्ड क्लास संस्थानों में निजी काबिलियत के आधार पर प्रवेश मिला, सिंधिया होने की वजह से नहीं। पढ़ाई पूरी होने के बाद मुझे साढ़े चार साल दो फाइनेंसियल सर्विस कंपनियों, मर्लिन लिंच और मॉर्गन स्टेनली के साथ काम करने का मौका मिला। ज्योतिरादित्य सिंधिया बताते हैं कि इन कंपनियों में भी सिंधिया राजवंश से जुड़ा होना काम नहीं आया, बल्कि कड़ी मेहनत से श्रेष्ठ परिणाम देकर और हार्वर्ड व स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटीज में जो सीखा उसका इस्तेमाल कर खुद को साबित कर सका। सांसद सिंधिया के अनुसार इन कंपनियों ने मुझसे VIP होने की सहूलियत दिए बिना काम लिया। यही कारण है कि वह अपनी सीमाओं समझ सके। इससे उन्हें राजनीतिक कॅरियर में भी मदद मिली।

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