ग्वालियर, 09 दिसंबर। अपने जमाने में शहर के पॉश स्कूल का टॉपर, IIT कानपुर का मैकेनिकल इंजीनियर, 90 साल की आयु में अपने ही शहर की सड़क पर बेसहारा ठिठुरता मिला। बात करने पर जवाब फर्राटेदार अंग्रेजी में मिला तो उन्हें एक समाजसेवी संस्था अपने आश्रम पर ले गई। आश्रम की सेवा से बुजुर्ग को बेहद सुकून मिला, लेकिन जीवन का अंतिम समय वह अपनों के बीच गुजारना चाहते हैं। इसलिए आश्रम संचालक उनके अपनों की तलाश कर रहे हैं। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि अपने जमाने में शहर के पॉश मिसहिल स्कूल के टॉपर रहे, इसके IIT कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियर, आयु के सांध्यकाल में अपनों का साथ पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। ग्वालियर  में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। लाड़-प्यार में बचपन, ख़ुशहाल जवानी, लेकिन अंतिम पड़ाव पर अपनों से दूर बेसहारा….

शहर के ही निवासी और IIT कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियर सुरेंद्र बशिष्ठ कई बड़े संस्थानों में काम कर चुके हैं। अपने सक्रिय जीवनकाल में आय का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में व्यय करते रहे इंजीनियर बशिष्ठ की याददाश्त बेहद कम रह गई तो अपनों से भी बिछुड़ गए। आश्रम स्वर्ग सदन में  विशेषज्ञों की की देखरेखकरीब 90 बुजुर्ग इंजीनियर वशिष्ठ स्मृति के धुंधले झरोखों में झांकते हुए बताते हैं कि पहले सब कुछ ठीक-ठाक था। मां दुधमुंहा छोड़ चल बसी तो नाना-नानी ने बड़े लाड़-प्यार के साथ पाला। शहर के पॉश माने जाने वाले मिसहिल स्कूल के अंग्रेजी मीडियम के हायर-सैकेंड्री टॉपर रहे तो नाना ने IIT कानपुर में  मैकेनिकल ब्रांच में प्रवेश दिलाया। सुरेंद्र ने अच्छे अंकों के साथ बीटेक की डिग्री 1969 में हासिल की, और 1972 में लखनऊ के डीएवी कॉलेज से एलएलएम किया। उसके कई बड़े संस्थानों में काम किया, औऱ स्मृति लोप से ठीक पहले दिल्ली में कनॉट प्लेस के रीगल स्थित खादी ग्रामोद्योग में नौकरी करने लगे। समय का पहिया घूमा औऱ सुरेंद्र एक दुर्घटना का शिकार हो गए, उनकी याददाश्त चली गई। बातों-बातों में वह कहते हैं कि उनका विवाह हुआ था, लेकिन हादसे के बाद उनकी पत्नी छोड़कर चली गई। तभी से वह दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

बहुत धन कमाया और गरीब-जरूरत मंदों पर किया खर्च

सुरेंद्र वशिष्ठ ने अपने जीवन में बहुत धन कमाया, लेकिन कभी भी धन संग्रह नहीं पर जोर नहीं दिया। मंदिर और गरीबों पर अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वह खर्च करते रहे, बस खाने-पीने लायक धन ही अपने पास रखते थे। शायद वही पुण्य आज उनके साथ है, जो अपनों का साथ छूट जाने के बाद भी आश्रम स्वर्ग सदन का संरक्षण उन्हें मिल गया।   

रिश्तों की ख़बर नहीं, लेकिन कहते हैं-मुझे बरेली जाना है

इंजीनियर सुरेंद्र बशिष्ठ का जन्म ग्वालियर के महाडिक साहब के बाड़े में हुआ था। उनके पिता देश-विदेश में ख्यात जियाजी राव काटन मिल्स लिमिटेड में बड़े फैब्रिक सप्लायर थे। आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे सुरेंद्र की तीन बहनें और तीन भाई थे सभी का स्वर्गवास हो चुका है। पूछने पर इंजीनियर सुरेंद्र बशिष्ठ कहते हैं कि वह जीवन का अंतिम समय उत्तरप्रदेश के बरेली में बिताना चाहते हैं। हालांकि वह नहीं बाता पा रहे हैं कि बरेली में उनका कौन है। उनका एक दूर का रिश्तेदार ग्वालियर के गांधी नगर में रहता है, जो फिलहाल शहर में नहीं है। उसने पने अंकल के मैकेनिकल इंजीनियर होने की पुष्टि की है, सुरेंद्र वशिष्ठ बरेली जाने पर अड़े हुए हैं। आश्रम संचालक उनके रिश्तेदारों की, और बरेली में उनके रिश्तों की तलाश कर रहे हैं।

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