नई दिल्ली, 14 सितंबर। कर्नल रणबीर सिंह जामवाल तीन बार एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा चुके हैं। देश के इकलौते पर्वतारोही है जो वह दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा लहरा चुके हैं। अब तो उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने उन चोटियों पर भी तिरंगा मजबूती से गाढ़ दिया है जो 1962 के छल युद्ध में चीन ने छीन लीं थीं। कर्नल रणवीर सिंह ने अगस्त में भारतीय सेना को पैंगॉन्ग इलाके की इन चोटियों तक पहुंचाया है, उनकी इस दुस्साहसी जीत से चीन बौखलाया हुआ है।
सेना को महत्वपूर्ण ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, गुरंग हिल, मुकाबारी हिल और मगर हिल पर रणनीतिक रूप से नियंत्रण प्राप्त करना आवश्यक था। इन बर्फीली पहाड़ियों को नियंत्रण में लेकर सेना चीन को दृष्टि में ही नहीं नियंत्रण में भी रख सकती है। सेना ने इस अभियान का भार कर्नल जामवाल के कंधो पर डाल दिया। करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई वाले इन इलाकों तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती थी। ये वह इलाके हैं जहां ऑक्सीजन कम है, चढ़ाई खड़ी है और सामने शत्रु भी, यही कारण था कि देश और विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ सैन्य पर्वतारोही कर्नल रणबीर सिंह जामवाल को इस महत्वपूर्ण अभियान के लिए चुना गया।
फरवरी से ही शुरू कर दिया था गुप्त अभियान
कर्नल जामवाल को फरवरी में ही लेह में तैनात कर दिया गया था। वह गुप्त रूप से लगातार स्पेशल फोर्स टूटू रेजिमेंट के जवानों के साथ इस मुश्किल चढ़ाई की तैयारी कर रहे थे, तैयारी फरवरी से ही चल रही थी। अगस्त में इस अभियान को संपन्न कर दिया गया। कर्नल जमवाल अपनी टीम के साथ ऊपर पहुंचे तब रात का शून्य से 10-15 डिग्री नीचे तक चला जाता था। अभियान में प्रमुख चुनौती वहां तक गिने-चुने सैनिकों का ही पहुंच सकना था। अब कर्नल की टीम को 24 घंटे मुस्तैद रह कर कुछ ही पलों में नींद पूरी करनी होती है। इन इलाकों में बैखलाया हुआ चीन कोई भी हरकत कर सकता है।
कर्नल की टीम को देख चकित चीनी सेना को लौटना पड़ा था उल्टे पांव
कर्नल जामवाल की टीम की सतर्क चौकसी के कारण ही भारतीय सेना चीन को उल्टे पांव लौटने पर विवश कर सकी। कर्नल जामवाल की टीम की चुनौती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास पीने के लिए पानी तक नहीं है। पोर्टर बमुश्किल प्राणों को बचाते हुए पानी और बाकी सामान पहुंचा पा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि विगत कुछ दिनों में भारतीय सेना ने पैंगॉन्ग इलाके में स्पांगुर गैप, रीजुंग पास, रेकिंग पास में रणनीतिक नियंत्रण प्रप्त कर लिया है। इस कारण लद्दाख के इस इलाके में अब भारतीय सेना चीन की प्रत्येक गतिविधि पर निगरानी रख सकेगी। इसके साथ ही चीन के प्रमुख सैन्य शिवर भी हमारी फायरिंग सीमा में आ गए है।
हिम क्षेत्रों के शेर हैं कर्नल जामवाल
- कर्नल जामवाल सेना की जाट रेजिमेंट में सैनिक के रूप में भर्ती हुए थे। इससे पहले दिल्ली में सेना के एडवेंचर नोड में पदस्थ थे। उन्हें 2013 में तेनजिंग नोरगे अवॉर्ड मिला था, जो पर्वतारोहियों का सबसे बड़ा सम्मान है।
- अप्रैल 2015 में जब नेपाल में भूकंप आया तो जामवाल अपनी टीम के साथ एवरेस्ट बैस कैम्प में थे। इस भूकंप में बेस कैम्प पर मौजूद 22 पर्वतारोहियों और शेरपाओं की मौत हो गई थी। हालांकि, कर्नल जमवाल की टीम इसमें सुरक्षित रही और बाद में उन्होंने वहां रेस्क्यू ऑपरेशन से दर्जनों जानें बचाईं।
- उत्तराखंड के माउंट माना पर 2009 में चढ़ाई के दौरान फ्रॉस्ट बाइट से कर्नल जामवाल ने अपनी एक उंगली खो दी। वह 7 घंटे तक 23 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फीले तूफान में फंसे रहे थे। जो रस्सियां पर्वतारोहियों के लिए लगाई थीं, बर्फ में दब गई थीं।