उज्जैन, 17 अगस्त। श्रावण-भादौ मास में निकलने वाली भगवान महाकाल की सवारियों के क्रम में सोमवार को शाही सवारी के आयोजन में भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सम्मिलित हुए। ग्वालियर रियासत की 300 साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए सांसद सिंधिया ने बाबा महाकाल की पालकी का पूजन कर शाही सवारी को रवाना किया।
300 साल पुरानी है शाही सवारी की परंपरा
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में श्रावण-भादौ मास में भगवान महाकाल की सवारी निकलने की परंपरा करीब 300 साल पुरानी है। सिंधिया राजवंश ने भगवान महाकाल की सवारी निकालने की शुरुआत की थी। तब से आज तक इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। हालांकि इस दौरान कई बदलाव देखने को मिले हैं।
54 साल पहले बदला गया था मार्ग
कोरोना संक्रमण को देखते हुए 54 साल बाद शाही सवारी का मार्ग परिवर्तित किया गया। इससे पहले 1966 में तत्कालीन कलेक्टर ने नए मार्ग से सवारी निकालने का निर्णय लिया था। बुजुर्गों के मुताबिक उस समय तोपखाना होते हुए सवारी रात करीब 2 बजे महाकाल मंदिर पहुंची थी। बीते तीन दशक में भी शाही सवारी में कई परिवर्तन देखने को मिले हैं। हालांकि भगवान के मुखारविंद निकलाने की परंपरा हर दौर में कायम रही है।
महाकाल मंदिर पं.महेश पुजारी के अनुसार 1966 में शाही सवारी के लिए जिस मार्ग का चयन किया गया था, उस मार्ग से सवारी देर से मंदिर पहुंची थी। मंदिर की परंपरा अनुसार रात्रि 11 बजे पट बंद हो जाते हैं। पालकी को निर्धारित समय पर मंदिर पहुंचाने के लिए मार्ग में बदलाव किया गया। बीते वर्ष तक सवारी कंठाल से सतीगेट, छत्रीचौक, गोपाल मंदिर होते हुए रात 10 बजे मंदिर पहुंच जाती थी।
भगवान महाकाल की शाही सवारी के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा पूर्व में घोषित 17 अगस्त का शासकीय अवकाश निरस्त कर दिया गया है। यह स्थानीय अवकाश अब आने वाले किसी पर्व पर घोषित किया जाएगा।