अयोध्या, 05 अगस्त। भारत के युगों पुराने इतिहास में मंदिरों के निर्माण, विध्वंस, पुनरुद्धार, जीर्णोद्धार, नवनिर्माण और पुनर्निर्माण की सैकड़ों कहानियां व्याप्त हैं। दो कहानियां हैं, जो ज्यादा पुरानी नहीं है, इसलिये स्मृतियों में ताजा हैं। दोनों के ध्वंस व सृजन की ये कहानी लगभग मिलती-जुलती है। कहानी सोमनाथ और अयोध्या की है, इनमें पात्र भी गुजरात व उत्तरप्रदेश से संबंद्ध रहे। सोमनाथ ने 1026 में महमूद गजनवी के बर्बर विध्वंस को झेला तो अयोध्या में 1528बाबर के सिपहसालार मीर बांकी ने कबाइली बर्बरता का शिकार श्रीराम जन्मभूमि मंदिर बना।
सोमनाथ मंदिर जीर्णोद्धार का नेहरू ने किया विरोध
उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 12 नवंबर, 1947 को जूनागढ़ की बड़ी सार्वजनिक सभा में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण व शिवलिंग की पुनर्स्थापना के संकल्प की घोषणा की। हालांकि इससे पहले 1921 में केएम मुंशी इसके लिए आवाज उठा चुके थे, लेकिन तब हिंदू दोहरी गुलामी झेल रहे थे, अंग्रेजों की औऱ जूनागढ़ नवाब की।
आजाद भारत में भी जूनागढ़ के नवाब ने विरोध किया और जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की साजिश रच डाली। तब पटेल ने सेनाओं को जूनागढ़ भेज नवाब की स्टेट का देश में विलय करा दिया। इसके बाद शिवलिंग की पुनर्स्थापना के काम को साकार करने की योजना पर काम शुरू कर दिया।
कैबिनेट में नेहरू ने किया विरोध, गांधी ने सरकारी खर्च पर लगवाई रोक
पटेल ने महात्मा गांधी से आशीर्वाद लेने के बाद नेहरू से मिलकर कैबिनेट में प्रस्ताव लाने का आग्रह किया। कैबिनेट की बैठक 1951 के प्रारंभ में हुई। नेहरू के विरोध के बावजूद सरकारी खर्च पर सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित हुआ। कैबिनेट मीटिंग के बाद कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी (केएम मुंशी) और एनवी गाडगिल गांधी के पास गए तो गांधी ने सरकारी खर्च पर मंदिर के जीर्णोद्धार पर आपत्ति जताई व जन सहयोग का सुझाव दिया। इसके लिए सोमनाथ मंदिर जीर्णोद्धार ट्रस्ट की स्थापना की गई, इसकी जिम्मेदारी मुंशी को सौंपी गई, जो बाद में उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहे।
नेहरू आयोजन में नहीं हुए शामिल राजेंद्र प्रसाद को भी रोका
ट्रस्ट की स्थापना से पूर्व सौराष्ट्र के तत्कालीन राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई, 1950 को मंदिर के जीर्णोद्धार के काम की आधारशिला रख दी। इस बीच, सरदार पटेल की मृत्यु के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार देख रहे केएम मुंशी ने सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग की पुनर्प्रतिष्ठा व पुनर्निर्माण के काम के शुभारंभ की तिथि 11 मई, 1951 तय कराई। मुंशी ने राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद व प्रधानमंत्री नेहरू को आमंत्रित किया। नेहरू ने कार्यक्रम में भाग लेने से सख्त लहजे में इनकार कर दिया, और राजेंद्र बाबू को वहां नहीं जाने को कहा। राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को अनसुना कर आयोजन में भाग लिया और पूजा-अर्चना भी की। साथ ही कहा कि दुनिया देख ले कि विध्वंस से निर्माण की ताकत बड़ी होती है।
सोमनाथ की तरह अयोध्या भी हुई छद्म धर्मनिरपेक्षता की शिकार
मार्च 1885 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला न्यायाधीश सीएम चैंबियर के रामजन्म स्थान पर पूजा अर्चना और मूर्तियों को यथावत रखने के निर्णय से लेकर उच्चतम न्यायालय के 9 नवंबर, 2019 के अंतिम फैसले द्वारा 2.77 एकड़ भूमि का विवाद और रामलला विराजमान का भूमि पर मालिकाना हक के निर्णय तक लंबा इतिहास है।
श्रीराम जन्मभूमि पर शिलान्यास भी दो प्रधानमंत्रियों की भूमिका के संयोग को जोड़ रहा है। नेहरू के नाती राजीव ने राजनीतिक और कानूनी कारणों से 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास की अनुमति तो दे दी थी, लेकिन 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास हुआ तो वह अयोध्या जनबूझ कर नहीं गए। जो स्थल राजीव ने दिया था वह भी विवादित 2.77 एकड़ भूमि के बाहर एवं मौजूदा मंदिर के सिंहद्वार पर था। शिलान्यास की घोषणा के साथ-साथ ही मस्जिद समर्थकों और कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के निशाने पर सरकार आई तो 24 घंटे के भीतर ही शिलान्यास स्थल को विवादित बताते हुए काम रुकवा दिया गया।
दोनों मंदिरों की डिजायन पिता-पुत्र ने बनाई
एक संयोग यह भी है कि शिल्पकार गुजरात का एक ही परिवार है। प्रभाशंकर सोमपुरा ने सोमनाथ मंदिर का डिजाइन बनाया था। अब राम जन्मभूमि मंदिर का डिजाइन उनके बेटे चंद्रकांत सोमपुरा ने तैयार किया है।
दोनों प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के सांसद
नेहरू, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर का विरोध किया था और शिलान्यास में भी नहीं गए थे, वह उत्तर प्रदेश के फूलपुर से सांसद रहे। जबकि मोदी जिनका ध्येय ही राम जन्मभूमि मंदर निर्माण रहा वह उत्तरप्रदेश की वाराणसी से सांसद हैं। मोदी का राम जन्मभूमि स्थल पर आना भावी पीढ़ी को बताएगा कि नेहरू के रूप में उत्तर प्रदेश से सांसद चुने गए एक प्रधानमंत्री ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग की पुनर्प्रतिष्ठा में शामिल होने से इन्कार कर दिया था। जबकि सोमनाथ की धरती पर जन्म लेने वाले व उत्तर प्रदेश से सांसद नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के भूमि पूजन में हिस्सा लेने में संकोच नहीं किया।