जहां एक ओर भारत का चंद्रयान-3 मिशन इतिहास लिखने से अब महज एक कदम की दूरी पर है। वहीं रूस का मिशन मून लूना-25 फेल होता दिख रहा है। खबर है कि इसमें ऑर्बिट बदलते वक्त आई खराबी के बाद लूना-25 की लैंडिंग के चांस कम होते दिख रहे हैं। वहीं भारत का चंद्रयान-3 मिशन पूरी तरह फिक्स रूट पर है। अगर रूस का लूना-25 अपने मून मिशन में असफल होता है या इसकी लैंडिंग टलती है तो फिर सारी दुनिया की उम्मींदें भारत के चंद्रयान-3 पर ही आ टिकेंगी।

बता दें कि 47 साल बाद रूस के मिशन मून को बड़ा झटका लग गया है। रूस की अतंरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस के लूना-25 में तकनीकी ख़राबी आ गई है। लूना-25 में ये खराबी लैंडिंग से पहले ऑर्बिट बदलते वक्त हुई है। फिलहाल रॉसकॉसमॉस के साइंटिंस्ट इसे ठीक करने की कोशिश में जुटे हैं। रूस के लूना-25 की लैंडिंग 21 अगस्त को होनी थी, लेकिन तकनीकी खराबी के बाद अब ये लैंडिंग कब होगी इस बारे में अभी तक रॉसकॉसमॉस कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है।

बता दें कि रूस के लूना-25 को भी उसी दक्षिणी ध्रुव पर उतरना है जहां इसरो के विक्रम लैंडर को उतरना है। रूस ने अपने लूना-25 को 10 अगस्त को चांद के लिए रवाना किया था। इस तकनीकी खराबी के बाद रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोसमोस ने अभी यह नहीं बताया है कि लूना-25 की कल संभावित लैंडिंग हो पाएगी या नहीं। रूस के लूना को कल यानी 21 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव सॉफ्ट लैंडिंग करनी है। रूस ने करीब पांच दशक बाद अपना ये मून मिशन लॉन्च किया था।

ये बता भी ध्यान देने वाली है कि जहां एक ओर इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को चांद की ओर रवाना किया था तो वहीं रूस ने इसके करीब एक महीने बाद लूना-25 को 10 अगस्त को लॉन्च किया था। बावजूद इसके भी लूना-25 की सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रयान-3 से पहले होने वाली है। ऐसा इसलिए क्योंकि लूना-25 के पास इसरो से कहीं ज्यादा आधुनकिक लॉन्चर है जो लूना-25 को डायरेक्ट रूट से चांद तक लेकर गया है। जो केवल 11 दिनों में चांद तक की सतह तक पहुंच जाएगा। वहीं इसरो के चंद्रयान-3 ने चांद तक पहुंचने के लिए ऑर्बिटल रूट लिया है जिसके तहत इसे लैंडिंग करने में एक महीने से भी ज्यादा वक्त लग रहा है।

इतना ही नहीं लूना-25 भारत के चंद्रयान-3 से काफी हल्का भी है। लूना-25 का वजन केवल 1,750 किलोग्राम है, जो चंद्रयान-3 के 3,800 किलोग्राम से काफी हल्का है। वहीं दूसरी ओर भारत के चंद्रयान-3 से पूरी दुनिया को चमत्कार की उम्मीद है। अब दुनिया भर के अतंरिक्ष वैज्ञानिकों की इसरो की तरफ निगाहें हैं। शनिवार रात 2 बजे चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर विक्रम में दूसरी बार डीबूस्टिंग की गई। इस डीबूस्टिंग के बाद अब लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती के और करीब पहुंच गया है।

 

इस वक्त लैंडर विक्रम चंद्रमा की कक्षा में सबसे पास 25 किलोमीटर की दूरी पर और सबसे दूर 134 किलोमीटर की दूरी की कक्षा में चक्कर लगा रहा है। इसरो के मुताबिक अब केवल डोरबिट बर्न और लैंडिंग ही बची है। लैंडर इस समय जिस कक्षा में है उसे इसरो द्वारा इंटरमीडिएट ट्रांसफर ऑर्बिट कहा जाता है। यह वह जगह है जहां लैंडर अपने लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय होने का इंतजार करेगा और इसी कक्षा से लैंडर विक्रम की चंद्रमा पर 23 अगस्त शाम 5 बजकर 45 मिनट पर लैंडिंग होगी।

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