ग्वालियर, 20 जुलाई। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बदलने के बाद भाजपा सरकार अब तक सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्तियां नहीं कर सकी है। अब तक तीन अतिरिक्त महाधिवक्ता और दो उप महाधिवक्ता ही नियुक्ति किए जासके हैं। मोटे वेतन-मानदेयों वाले खाली पड़े इन करीब 3 दर्जन पदों को पाने के लिए संघ-भाजपा के समर्थक वकील जोड़तोड़ में शिद्दत से जुट गए हैं।
कमलनाथ सरकार को गए करीब 4 महीने बाद भी हाईकोर्ट में सरकारी अधिवक्ता नियुक्त नहीं किए जासके हैं। करीब तीन दर्जन सरकारी अधिवक्ताओं की रिक्तियां बताई जा रही हैं, और अब तक तीन अतिरिक्त महाधिवक्ता और दो उप महाधिवक्ताओं की ही नियुक्ति हो सकी है।
मोटे वेतन-मानदेयों और रौब-रुतबे के लिए जोड़तोड़
गौरतलब है कि है अधिवक्ताओं को करीब सवा लाख रुपए महीना मानदेय मिलता है जबकि उप महाधिवक्ता को 1,60,000 और अतिरिक्त महाधिवक्ता को 1,80,000 रुपए मानदेय के अलावा चार पहिया वाहन और ड्राइवर भी दिए जाते हैं। ऊपर से सत्ता पक्ष के वकील होने का रौब-रुतबा बोनस में। अमूमन हर सरकार अपने स्तर पर इन अधिवक्ताओं की नियुक्तियां करती है, लिहाजा कांग्रेस सरकार के समय उसकी विचारधारा वाले अधिवक्ताओं को नियुक्त किया गया था, लेकिन बीजेपी के सत्ता में लौटते ही उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। अब संघ-भाजपा खेमे के वकील इन ऊंचे वेतन वाले पदों पर नियुक्ति के लिए हाथ पैर मार रहे हैं।
प्रावधान नहीं फिर भी हर सरकार बनाती है अपनी पसंद के वकील
हैरानी की बात यह है कि सरकार अधिवक्ताओं को नियुक्त करे ऐसा कहीं प्रावधान नहीं है, लेकिन हर सरकार अपनी पसंद के ही अधिवक्ताओं को नियुक्त करती आरही है। गनीमत है कि अभी कोरोना संक्रमण की रोकथाम के मद्देदनज़र रेगुलर कोर्ट नहीं लग रहे हैं, सिर्फ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई हो रही है। जारी माह के अंत के बाद अगस्त में अगर कोर्ट लगे तो सरकारी अधिवक्ताओं की कमी जरूर अखरेगी। गौरतलब है कि ये अधिवक्ता कानूनी विवादों में सरकार की ओर से न्यायालय में पैरवी करते हैं।