लंदन। वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक की पिघलती हुई बर्फ के कारण महासागरों के जलस्‍तर के बढ़ने और गहरी धाराओं की रफ्तार घटने के कारण पैदा होने वाले जोखिमों के बारे में बताया गया है। रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर बर्फ के पिघलने से महासागरों की गहरी धाराओं की रफ्तार घटी तो लोगों की सोच से कहीं ज्‍यादा बुरे असर मानव जीवन पर पड़ेंगे। शोध के मुताबिक, अंटार्कटिक की बर्फ पिघलने का असर महासागरों पर बहुत लंबे समय तक रहेगा।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोध में कहा गया है कि अगले 30 साल में अंटार्कटिक के आसपास महासागरों की गहरी धाराओं की रफ्तार 40 फीसदी तक कम हो जाएगी। इससे जलवायु से लेकर ताजे पानी और वातावरण में ऑक्‍सीजन पर बुरा असर पड़ेगा। इसके साथ ही धरती पर जीवन बनाए रखने वाले पोषक तत्‍वों पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, अंटार्कटिक के आसपास खरबों गैलन ऑक्‍सीजन से भरपूर नमकीन पानी बहता रहता है। ये ठंडा पानी भारतीय प्रशांत महासागर, प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर के उत्‍तर में गहरी धाराएं भेजता है। अगर ये धारा गहरे समंदर में टूट जाए तो 4000 मीटर के नीचे महासागर में बहने वाली धाराएं धीमी होते-होते थम जाएंगी। इससे समुद्र की महराई में पोषक तत्‍वों का बनना थम जाएगा। इसका नतीजा ये निकलेगा कि समंदर की सतह के नजदीकी समुद्री जीवन को बना रखने वाले पोषक तत्‍वों की कमी होती जाएगी। इससे लंबे समय में दुनिया में पेयजल की कमी भी पैदा हो सकती है।

शोध व अध्‍ययन के हेड और न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मैथ्यू इंग्लैंड के मुताबिक, अध्ययन में पेश किया गया उनका मॉडल अंटार्कटिक के गहरे महासागर में पानी के बहाव को आपदा की ओर बढ़ने की गति से दिखाता है। इससे संकेत मिलता है कि अगर वैश्विक स्‍तर पर कार्बन उत्सर्जन ज्‍यादा बना रहता है तो अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलती है। इससे महासागरों के सबसे गहरे हिस्सों में पानी के संचलन में सुस्ती आ जाएगी और फिर संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। शोधकर्ताओं ने दूसरे अध्‍यन में बताया है कि ग्‍लोबल वार्मिंग ने अंटार्कटिका के सबसे बड़े हिमखंडों में से एक थ्‍वाइट्स को खतरे में डाल दिया है। अगर इस ग्‍लेशियर से बर्फ टूटी तो काफी पानी समुद्र में जाएगा और जलस्‍तर बढ़ा देगा। शोध के मुताबिक, 1.92 लाख वर्ग किमी के ग्‍लेशियर का एक तिहाई हिस्‍सा बर्फ के तैरते हुए टुकड़े हैं। अब इनमें दरारें बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में इस हिमखंड में तेजी से बड़े बदलाव हो रहे हैं।

आशंका जताई जा रही है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा पांच साल के भीतर 45 किमी लंबा बर्फ का एक टुकड़ा चकनाचूर होकर बिखर जाएगा। इसके टूटने के बाद भारी मात्रा में बर्फ पानी में जाकर पिघलेगा। इससे और ज्‍यादा बर्फ के टुकड़े टूटेंगे और पानी में मिलेंगे। शोध की रिपोर्ट में बताया गया है कि पहले भी जुलाई 2017 में पश्चिमी अंटार्कटिका में ए-68 नाम का एक हिस्‍सा लार्सन सी आई शेल्‍फ से टूटकर अलग हो चुका है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अब जलवायु में हो रहे बदलावों के कारण थ्‍वाइट्स के टूटने के हालात पैदा हुए हैं। दरअसल, बर्फ के नीचे के पानी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे ग्‍लेशियर में बर्फ के बड़े हिस्‍से पिघल रहे हैं। इससे पिछले 30 साल में ग्‍लेशियर की गुफाएं बन रही हैं। अगर थ्‍वाइट्स टूटकर पूरी तरह से पिघल जाता है तो समंदर का जलस्‍तर 25 इंच तक बढ़ जाएगा। वहीं, अगर वेस्‍टर्न अंटार्कटिका में पूरी बर्फ पिघल जाए तो समंदर का जलस्‍तर 33 मीटर बढ़ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो प्रलय जैसे हालात बन जाएंगे। बता दें कि वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण ग्‍लेशियर्स की बर्फ के पिघलने को लेकर लगातार सचेत कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने इसके कई बुरा नतीजे भी गिनाए हैं।

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