ग्वालियर, 03 अप्रेल। महाराजा जयाजीराव सिंधिया और उनकी सेना के एक कर्नल को कुलदेवी महाकाली सपने में लगातार आकर भावी विपत्तियों के संबंध में चेतावनी देने लगीं, उनकी चेतावनी सटीक बैठती थी। एक बार कुलदेवी ने महाराज जयाजीराव सिंधिया को मंदिर बनाने का आदेश दिया। जयाजीराव ने मंदिर इस तरह बनवाया कि महल में उनके कक्ष में निर्मित विशेष वातायन से सीधे कुलदेवी के दर्शन हो जाएं।

कोरोना संकट से उबरे देश में दो वर्ष पश्चात इन दिनों चैत्र नवरात्र धूमधाम से मनाया जा रहा है।  khabarkhabaronki.com इस अवसर पर विशेष श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत कर रहा है ग्वालियर-चंबल अंचल के प्रमुख देवी मंदिरों की पावन गाथा। इस कड़ी में जानिए सिंधिया राजवंश की कुलदेवी के मंदिर की रोचक कहानी….

– करीब 137 साल पहले जयाजीराव सिंधिया की फौज में आनंदराव मांढरे कर्नल थे।
– महाराज जयाजी राव और कर्नल मांढरे को कुलदेवी मां महाकाली स्वप्न में भावी विपत्तियों के संबंध में चेतावनी देने लगीं। कर्नल मांढरे और महाराज जयाजीराव सिंधिया को सपने में मिलने वाली चेतावनी और दिशानिर्देश शतप्रतिशत सत्य सिद्ध होने लगे।
– मां महाकाली के स्वप्न-निर्देशों से महाराज जयाजीराव को राजकाज के निर्णयों में सरलता होने लगी।
– इसी काल में कर्नल मांढरे को स्वप्न में मां महाकाली ने सिंधिया राजवंश के साम्राज्य को स्थाई बनाने के लिए एक मंदिर बनवाने का आदेश दिया।

मंदिर ऐसा बना कि सिंधिया राजवंश के राजा अपने कक्ष ही कुलदेवी के दर्शन कर सकें

– कर्नल मांढरे ने महाराज जयाजीराव को स्वप्न के संबंध में बताया तो मंदिर बनाने के लिए उन्होंने कर्नल मांढरे को ही आदेश दे दिया।
– महाराज के निर्देश पर कर्नल मांढरे ने ऐसी भूमि तलाश की कि वहां बना मंदिर सिंधिया राजवंश के निवास से स्पष्ट दिखा देने लगा। गर्भग्रह का मुख्य द्वार और मां महाकाली का विग्रह इस तरह प्रतिष्ठित किया गया कि वह राजनिवास से स्पष्ट दिखाई दे।

– मंदिर कर्नल आनंदराव मांढरे की देखरेख में ही निर्मित हुआ इसलिए इस मंदिर को मांढरे वाली माता कहा जाने लगा। तब से परंपरा भी प्रारंभ हुई कि मां महाकाली की नियमित सेवा अर्चना की जिम्मेदारी मांढरे के वंशज ही उठाएंगे। कर्नल आंनंदराव मांढरे के वंशज आज भी 148 वर्ष पुरानी इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।

अष्टभुजा महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली है सिंधिया राजवंश की कुलदेवी
– महाराज जयाजीराव ने जयविलास पैलेस के सामने ही एक पहाड़ी पर माता का मंदिर बनवाया था। कर्नल मांढरे ने मंदिर में अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया।
– जयाजी महाराज माता की भक्ति ऐसे समर्पित हुए कि उनके लिए सुबह उठते ही प्रथम दर्शन और शाम को सोने से पहले दर्शन आवश्यक हो गए।
– इसके लिए उन्होंने अपने कक्ष में एक विशेष वातायन बनवाया, वह यहां से विशेष दूरबीन के माध्यम से कुलदेवी के दर्शन करने लगे।
– महाराजा जयाजीराव ने सुबह उठते ही प्रथम दर्शन और रात सोने से पहले कुलदेवी के दर्शन को नियम बना लिया।

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