महेश शिवहरे

ग्वालियर, 06 फरवरी। यह दिन कभी न भूले जाने वाला दिन बन गया… संगीत की बारीकियां तो नहीं जानता, किंतु इससे मन को सुकून मिलता था इसलिए बाल्यावस्था से ही संगीतकार और गायकों से जुड़ा रहा। जबसे होश संभाला तबसे ही लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार और मन्ना डे जैसे महान गायकों का संगीत मन को लुभाने लगा था। करीब 40 साल पहले जब अखबारों में छपा कि स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर को नासूर हो गया है। तब मैं नासूर के बारे में नहीं जानता था। पूछताछ करने में पता चला कि यह कोई घातक रोग है, तब पहली बार मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की थी कि लता दीदी की तकलीफ मुझे मिल जाए, और भगवान उन्हें स्वस्थ कर दे। लता दीदी से आत्मीय रिश्ता किन कारणों से था, यह तो नहीं जानता, पर धीरे-धीरे समझ में आने लगा था कि उनकी गहन संगीत साधना औऱ दैवीय आवाज ही मेरे इस लगाव की वजह थी। समय के साथ धीरे-धीरे मैं भी उम्रदराज होता चला गया स्वर साम्राज्ञी लता के सुरीले साथी गायक एक-एक कर बिछुड़ते गए। पहले 1976 में लता दीदी के मुकेश भैया, फिर 1980 में मोहम्मद रफी और 1987 में उनके किशोर दा भी चले गए। इन महान गायकों के साथ लता दीदी ने भारतीय फिल्म संगीत के अविस्मरणीय स्वर्ण युग का सृजन किया था। स्वर-कोकिला लता दीदी ही की दिव्य आवाज के सहारे उन महान संगीत साधकों का गम भूला रहा।

उनके साथ पुरुष गायकों में नई पीढ़ी के कलाकार आते रहे, और लता दीदी की गायकी का जादू अमर गीत रचता रहा। उनके साथ गाने और संगीत सृजन का अवसर पाने वाले नई पीढ़ी के कला कलाकार अपने आप को धन्य मानते थे। ईश्वर की दी गई मोहलत के फ़नी दुनिया छोड़नी तो सबको ही पड़ती है, किंतु लता दीदी के जाने से मन की यह तमन्ना अधूरी रह गई कि काश! एक बार सुरों की उस देवी का साक्षात दर्शन कर उनके चरणों में अपना सिर रख पाता। भौतिक रूप से तो यह कामना पूर्ण हो नहीं सकी किंतु, मन की गहराइयों से यह कई बार इस कल्पना तो साकार किया है। विगत दिनों उनके अस्पताल में भर्ती होने की सूचना मिली तब से उनके फेसबुक पेज ‘लता मंगेशकर नाइटेंगल’ में हमेशा में ईश्वर से उन्हें जल्द स्वस्थ रहने की दुआ मांगता रहा। इस बार कोई दुआ क़ुबूल नहीं हुई। रविवार  06 फरवरी को सुबह पूजा अर्चना के बाद जैसे ही मोबाइल में 11:35 का एक टीवी मैसेज देखा कि लता दीदी अब नहीं रहीं, एकबारगी लगा सब कुछ खत्म हो गया है।

सात दशकों तक लता मंगेशकर के गाए गीतों से कई नायिकाओं के कैरियर को प्रवाह मिला, लता दीदी की दिव्य आवाज से उन पर फिल्माए गीत अमर हो गए। कई नई नायिकाएं आईं लता मंगेशकर रुपहले पर्दे पर उन पर फिल्माए गीतों की आवाज बनीं। धीरे-धीरे पर्दे वह पहले पर्दे से गायब हुईं, फिर दुनिया को अलविदा कह गईं। नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी एवं साधना जैसी महान अदाकाराएं लता दीदी के सुरों पर थिरकती गुज़र गईं तो वहीदा रहमान, आशा पारेख, मुमताज, लीना चंदावरकर जैसी भी हैं जो आज भी लता दीदी के गीतों को अपने शेष जीवन का सहारा बनाती हैं। लता जी का जाना मेरे लिए आत्मीय क्षति है, जिसकी मैं न कल्पना कर सकता था और न ही अब अभिव्यक्त कर पा रहा हूं।

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