मण्डी, 17 जनवरी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी और नई दिल्ली के इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं के हाथ बड़ी कामयाबी लगी है। शोध में सिद्ध हुआ है कि हिमालयी पौधे बुरांश के अर्क से कोरोना वायरस दूर भागेगा। शोध दल के निष्कर्ष को बायोमोलिक्युलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स नामक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है। ज्ञातव्य है कि हिमालयी बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रोन अरबोरियम है। यह हिमाचल, उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने बुरांश-पुष्प की पंखुड़ियों में ऐसे फाइटोकैमिकल्स की पहचान की है जो शरीर में COVID-19 के वायरस का प्रवेश रोकने में सक्षम होगा। इसकी पंखुड़ियों का सेवन स्थानीय आबादी स्वास्थ्य संबंधी कई लाभों के लिए विभिन्न तरीकों से पारंपरिक रूप से करती आ रही है। हिमाचल और उत्तराखंड में बुरांश का पौधा अधिसंख्या में पाया जाता है। शोध टीम के नेतृत्वकर्ता वैज्ञानिक डॉ.श्याम कुमार मसकपल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस, आईआईटी मंडी के साथ डॉ.रंजन नंदा और डॉ. सुजाता सुनील ने इस शोध में अहम भूमिका का निर्वाह किया है।
इस तरह रोकता है COVID-19 के वायरस का प्रवेश
शोध के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.श्याम कुमार के अनुसार बुरांश की पंखुड़ियों के गर्म पानी में बनाए अर्क में काफी मात्रा में क्विनिक एसिड और इसके डेरिवेटिव पाए गए हैं। आणुविक गतिविधि के अध्ययनों से पता चला है कि ये फाइटोकेमिकल्स वायरस से लड़ने में दो तरह से प्रभावी हैं।
- ये मुख्य प्रोटीएज से जुड़ जाते हैं, जो (प्रोटीएज) एक एंजाइम है और वायरस को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ये मानव एंजियोटेंसिन-परिवर्तित एंजाइम-2 (एसीई 2) से भी जुड़ता है जो होस्ट सेल में वायरस के प्रवेश की मध्यस्थता करता है। प्रायोगिक परीक्षण कर यह भी देखा गया कि पंखुड़ियों के अर्क की गैर-विषाक्त खुराक से वेरो ई 6 कोशिकाओं में कोविड का संक्रमण रुकता है (ये कोशिकाएं आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया संक्रमण के अध्ययन के लिए अफ्रीकी हरे बंदर के गुर्दे से प्राप्त होती हैं) जबकि खुद कोशिकाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
हिमालय में समुद्रतल से 1500-3600 मीटर ऊंचाई पर मिलती है COVID-19 संजीवनी
हिमाचल, उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश के पेड़ समुद्रतल तल से लगभग 1500 से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, मंडी, शिमला, चंबा तथा सिरमौर जिलों में बुरांश के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं। इन फूलों को विभिन्न जिलों में आमतौर पर बुरांश, ब्रास, बुरस या बराह के फूल के नाम से जाना जाता है। इससे स्क्वेश, जैम आदि जैसे कई लोक-व्यंजन बनाए जाते हैं, यह स्थानीय बाजारों में सौ रुपए किलो तक बिकता है।