वोकल-फॉर-लोकल की प्रेरणा से अंचल के कलाकारों को मुंबई में मिला मंच

ग्वालियर, 25 दिसंबर। जय विलास पैलेस (JVP) स्थित महाराजा जीवाजीराव सिंधिया संग्रहालय गुलाबी सर्दी की धूप के साथ विंटर कार्निवाल से गुलजार हो उठा। शनिवार को दूसरे दिन कार्निवाल में दूरदारज के सैलानियों ने दस्तक दी औऱ यहां संजोई गई नायाब धरोहरों को देखा औऱ सराहा। लॉकडाउन खुलने के बाद अगस्त से शुरू हुए कार्निवाल के कारवां में इस बार भी टीम JVP अंचल भर से खोजी गई प्रतिभाओं को अवसर दिया। ज्ञातव्य है कि सिंधिया राजवंश की राजलक्षमी प्रियदर्शिनी राजे की पहल पर प्रारंभ किए गए इस कार्निवाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को प्रेरणा मान कर ग्वालियर-चंबल अंचल की प्रतिभाओं, कारीगरों, शिल्पियों, उद्यमियों औऱ कलाकारों को अवसर दिया जा रहा है। अब संग्रहालय में वर्ष भर इस तरह के आयोजन जारी रहेंगे ताकि अंचल में पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। गुलाबी सर्दी की कुनकुनी धूप में कार्निवाल और संग्रहालय सैलानी हुए रिफ्रेश….

कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन के साथ लॉक हुआ JVP का महाराजा जीवाजीराव सिंधिया संग्रहालय कार्निवाल की धूमधाम के साथ अगस्त में अनलॉक हो गया था। करीब सवा साल बाद संग्रहालय के अनलॉक होने के दौरान ही तय किया गया था कि समर के बाद विंटर कार्निवाल भी आयोजित किया जाएगा। महारानी प्रियदर्शिनी राजे की निर्देश पर 24 दिसंबर को तीन दिवसीय कार्निवाल का शुभारंभ हुआ। पहले दिन की औपचारिकताओं के बाद दूसरे दिन कार्निवाल में सुबह कुनकुनी धूप के साथ ही परिसर में सैलानियों की भीड़ जुट गई। कार्निवाल में ग्वालियर-चंबल की प्रतिभाओं के उत्पाद और कलाकृतियां के लिए सैलानियों में खासा उत्साह देखा गया। कार्निवाल का लुत्फ लेने अंचल के दूर-दराज ही नहीं राजधानी दिल्ली तक से सैलानी जुटे। उत्साह देख म्यूजियम प्रबंधन और टीम JVP को भरोसा हो गया है कि संग्रहालय में साल भर प्रस्तावित आयोजनों को सैलानियों का स्नेह मिलता रहेगा।

कार्निवाल में देशी गाय का शुद्ध घी, टेराकोटा कलाकृतियां, आंचलिक परिधान और संगीत भी

कार्निवाल की संयोजक गायत्री सिंह ने बताया कि इस बार भी स्थानीय कारीगरी, शिल्प, खाद्य पदार्थ, कलाकृतियों को अवसर दिया है। बीते साल से महारानी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया लगातार स्थानीय पत्थर-शिल्पियों के संपर्क में रहीं। उन्हें अगस्त में आयोजित कार्निवाल के साथ वर्तमान कार्निवाल में भी अवसर दिया गया है। इस मंच से मिले अवसर और प्रियदर्शिनी राजे के प्रयासों से यहां के कारीगरों और कलाकारों की कृतियां मुंबई के कई रेस्त्रां में सजाई गई हैं। इस बार भी आंचलिक कलाकृतियों, खाद्य, औऱ परिधान कार्निवाल में प्रदर्शित किया जा रहे हैं।

धमकन के लुप्त होते ग्रामीण पत्थर-शिल्प को मिला मंच

मुरैना जिले में जौरा से सटे गांव धमकन में सैंड-स्टोन से बनी जालीदार छतरियां लंबे समय से प्रसिद्ध रही हं। दूरदराज के लोग मंदिरो औऱ अपने पूर्वजों की स्मृति में बने स्मारकों मे स्थापित करने के लिए यहां छतरियां बनवाते रहे हैं। मांग के अभाव में मरती जारी इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए कार्निवाल में इन ग्रामीण कारीगरों की कौशल को भी प्रदर्शित किया जा रहा है।    

संग्रहालय में चांदी की ट्रेन औऱ टनों वजनी झूमरों को देखने उमड़े सैलानी

 ‘वोकल फॉर लोकल’ की परंपरा पर सजाए गए कार्निवाल में, घर में बने रंपरिक स्वादिष्ट व्यंजन, बेकरी उत्पाद कपड़े एग्रोटेक हस्तशिल्प का भी म्यूजियम की गैलरियों में प्रदर्शन किया गया है। कार्निवाल में टेक्सटाइल वर्कशॉप, मिशन ऑर्गेनिक प्लेनेट, टैटू, ज्वेलरी के साथ ही संगीत और दूसरी कलाओं का भी प्रदर्शन किया जा रहा है। सैलानियों को सबसे ज्यादा उत्सुकता चांदी की रेलगाड़ी, दरबार हॉल और उसमें लटके टनों वजनी दो बड़े झूमरों को देखने की थी। इसके अलावा रियासत कालीन और द्वितीय विश्व युद्ध के हथियार भी दर्शकों को पसंद आए।

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