मुरैना, 28 अक्टूबर। चंबल के शांति दूत पद्मश्री डॉ.एसएन सुब्बाराव पंचतत्व में विलीन हो गए। डॉ.सुब्बाराव को उनके बहनोई ईश्वर जॉइस ने मुखाग्नि दी। उनकी अंतिम विदाई कर्मस्थली जौरा के महात्मा गांधी सेवा आश्रम में दी गई। अंतिम विदाई से पूर्व  उन्हें राजकीय सलामी दी गई। बेंगलुरू से उनकी भांजी रजनी बहन भी अपने मामा को अंतिम विदा देने आई थीं। डॉ.सुब्बाराव की सेवा सुश्रूसा अंतिम समय में रजनी बहन ही कर रही थीं। मध्यप्रदेश-राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने दी भाई जी सुब्बाराव को श्रद्धांजलि, कर्मस्थली में हुए पंचतत्व में विलीन…..

डॉ.सुब्बाराव को अंतिम विदाई देने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने डॉ. सुब्बाराव को श्रद्धांजलि दी। उनके साथ कांग्रेस के पूर्व मंत्री जीतू पटवारी, कांग्रेस विधायक डॉ.सतीश सिकरवार समेत अनेक राजनेता पहुंचे। सोनिया गांधी के प्रतिनिधि रूप में कांग्रेस नेता अजय माकन ने भी डॉ.सुब्बाराव को श्रद्धांजलि दी। भाजपा की तरफ से पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह पहुंचे थे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डॉ.सुब्बाराव भाई जी को ऑनलाइन श्रद्धांजलि अर्पित की। उनका श्रद्धांजलि संदेश अंत्येष्टि स्थल पर आयोजित सभा में प्रसारित किया गया।

ज्ञातव्य है कि मुरैना जिले के जौरा में महात्मगांधी सेवा आश्रम स्थापित करने वाले सेलम नंजुद्दया सुब्बाराव का 92 वर्ष की आयु में बुधवार सुबह जयपुर में निधन हो गया था। सेलम नंजुद्दया सुब्बाराव का जन्म कर्नाटक के बेंगलुरू में सात फरवरी 1929 को हुआ था। चंबल घाटी में उन्होंने खूंखार माधो सिंह, मोहर सिंह और मलखान सिंह समेत 672 डकैतों का महसमर्पण कराकर मुख्य धारा में शामिल कराया था। जौरा में उन्होंने पहला महात्मा गांधी सेवा आश्रम स्थापित किया था। आज देश-विदेश में 20 जगहों पर गांधी आश्रम संचालित हैं। उन्हें पद्मश्री समेत कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

70 के दशक में कराया था 672 डकैतों का महासमर्पण

चंबल घाटी डाकुओं भय से थर्राती थी। तंत्र के अन्याय से बगावत कर चंबल के भरकों की शरण में पल रहे दर्जनों गिरोह के हजारों डकैतों के डर से आमजन तो क्या, पुलिस भी वहां जाने में थर्रा जाती थी। महात्मा गांधी के आव्हान पर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े डॉ.एसएन सुब्बाराव ने आजादी के बाद यहां आश्रम स्थापित कर  डेरा डाला था। वह डाकुओं के बीच गए, उन्हें समझाया, परिजन को साथ लेकर डकैतों से मिले, उन्हें डाकू जीवन त्याग नया जीवन अपनाने को प्रेरित किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चन्द्र सेठी से मिले, और डकैतों के महासमर्पण की भूमिका  और शर्तें बताईं। डकैतों के परिजन की पुलिस में नौकरी लगवाई, साथ ही खेती के लिए ज़मीन के पट्टे दिलवाए। सरकार ने शर्तें मान ली तो 1972 में जौरा के पगारा गांव के मैदान में 70 डाकुओं के एक साथ आत्मसर्मपण कराया। इसके बाद 1974 में कुल 672 डकैतों में एक साथ महासमर्पण किया। डकैतों ने आचार्य विनोबा भावे, स्वतंत्रता सेनानी और सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण व मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चन्द्र सेठी के समक्ष हथियार समर्पित किए। सबसे पहले मोहर सिंह और माधौ सिंह ने आत्मसमर्पण किया। इसके बाद दूसरे डकैत सरगना और उनके गिरोहों ने समर्पण किया। समर्पण के लि जेपी को लाने खुद डाकू सरगना माधो सिंह ठेकेदार का वेष रख कर जेपी से मिलने पहुंच गए थे। 

सुब्बाराव को मिले दर्जनों राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय सम्मान

पद्मश्री पुरस्कार, राष्ट्रीय युवा परियोजना का राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, काशी विद्या पीठ द्वारा डी लिट की मानद उपाधि, भारतीय एकता पुरस्कार, शांतिदूत अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्व मानवधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार-2002, राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार-2003, राष्ट्रीय संप्रदाय सद्भावना पुरस्कार-2003, जमानालाल बजाज पुरस्कार-2006, महात्मा गांधी पुरस्कार-2008, अणुव्रत अहिंसा पुरस्कार-2010, भारतीय साथी संगठन दिल्ली द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड-2014, कर्नाटक सरकार द्वारा महात्मा गांधी प्रेरणा सेवा पुरस्कार-2014, राष्ट्रीय सद्भावना एकता पुरस्कार-2014 नागपुर।

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