ग्वालियर। सिंधिया रियासत की महारानी, जिन्हें कभी अंग्रेजों ने 21 तोपों की सलामी का सम्मान दिया था, उन्हें तिहाड़ जेल में साधारण कैदियों के बैरक में समय बिताना पड़ा था। ग्वालियर की तत्कालीन महारानी विजयाराजे सिंधिया को तिहाड़ जेल में कैदी नंबर-2265 बन कर रही थीं। उनके पास की बैरक में जयपुर की महारानी गायत्री देवी भी रहीं थीं। इन दोनों को यह सजा इसलिए मिली थी क्योंकि उन्होंने इंदिरा गांधी के दबाव के समक्ष झुक कर कांग्रेस में आना स्वीकार नहीं किया था।
राजमाता विजया राजे सिंधिया की 12 अक्टूबर मंगलवार को 102वीं जयंती है। इस अवसर khabarkhabaronki.com प्रस्तुत है, उनके जीवन के उल्लेखनीय घटनाक्रम की रोचक कहानी…..
पहले महारानी और बाद में राजमाता के नाम से राजनीति में जानी गईं विजयाराजे सिंधिया 1975 की इमरजेंसी में तिहाड़ जेल में कैदी नंबर-2265 के तौर पर बंदी रही थीं। इसी जेल में उनके पास वाली सेल में 1975 में मीसा के तहत बंदी बनाई गईं जयपुर की महारानी गायत्री देवी भी कैद थीं। हमेशा ढेरों नौकर-चाकर के बीच रहने वाली और 21 तोपों की सलामी की हकदार रही दोनों महारानियों को अपनी कोठरी में बगैर किसी सहायक के अपने सारे काम खुद ही करने होते थे। देश की दो बड़ी रियासतों की महारानियों को जेल में एक ही टॉयलेट शेयर करना पड़ता था।
इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान लिया था बदला
दरअसल जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर महाराजा जीवाजी राव सिंधिया कांग्रेस में आ गए थे। उनके कैलाशवासी होने पर राजमाता जब राजनीति में आईं तो कांग्रेस के विरोधी खेमे में शामिल हो गईं। इंदिरा गांधी के आग्रह और दबाव दोनों को ही ग्वालियर की अंतिम महारानी ने टाल दिया। इंदिरा गांधी ने इसे अपमान मान लिया और 1975 में जब आपातकाल की अलोकतांत्रिक घोषणा हुई तो इसकी आड़ में सिंधिया परिवार के आवास जयविलास पैलेस पर छापा यह आरोप लगाकर डलवा दिया कि महल में तस्करी का सोना या दूसरा सामान हो सकता है। महल में कुछ नहीं मिला, लेकिन इंदिरा ने दबाव बनाने के लिए महारानी विजयाराजे सिंधिया को महीनों तक अवैध निरोध में रकने के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया।
झूठी भविष्यवाणियों की तसल्ली से बनाए रखा गायत्री देवी का धीरज
तिहाड़ जेल में जाते वक्त महारानी गायत्री देवी बीमार थीं। डॉक्टर्स ने उनकी कोई सर्जरी ड्यू बताई थी। इसलिए उनके बेटे युवराज भवानी सिंह रिहाई के लिए मेडिकल आधार पर प्रयास कर रहे थे। साधारण जीवन से अच्छी तरह परिचित रहीं विजयाराजे ने तो स्वयं को कारागार के जीवन में ढाल लिया था, किंतु गायत्री देवी के लिए बीमारी की हालत में जेल का कठोर जीवन दुश्वार हो गया था। ऐसे में जब भी वो हताश होतीं, विजयाराजे खुद को ज्योतिष का जानकार होने का दावा करते हुए यूं ही उनकी रिहाई की संभावित तारीख बता कर तसल्ली देती रहती थीं।
महारानी विजया राजे कैदियों की बन गई थीं बड़की माई
तिहाड़ की महिला कैदियों के कष्ट देख कर विजयाराजे ने उनके व बच्चों के लिए जेल के डॉक्टर से पूछ कर दवाइयों और कपड़ों की लिस्ट अपनी बेटियों को भिजवाई। दवाइयां व गर्म कपड़े उनको मिले, तो सब राजमाता के और करीब आ गईं। महिला कैदी उन्हें बड़की माई कह कर उनका खास खयाल रखने लगीं थीं। हत्या की एक आरोपी ने तो जेल प्रशासन को आवेदन सौंपा कि उसे राजमाता की सेवा में उनकी कोठरी में तैनात कर दिया जाए। महारानी विजयाराजे जेल में बीमार हो गईं तो डॉक्टरों ने इलाज पर उन्हें पैरोल पर बाहर जाने की सिफारिश की। जेल से जब राजमाता पैरोल पर बाहर जाने लगीं तो अंतिम दिन इन महिला कैदियों ने पहले अपनी बड़की माई के मनोरंजन के लिए भजन गाए, रवाना होते वक्त आंखों में आंसुओं के साथ फूल बरसाकर उन्हें विदाई दी।