ग्वालियर, 23 सितंबर। मोदी कैबिनेट में सम्मिलित होने के बाद पहली बार गृह नगर के प्रवास पर आए ज्योतिरादित्य सिंधिया गुरुवार सुबह कुलदेवी मांढरे वाली माता के दर्शन करने पहुंचे। माता की पूजा-अर्चना कर मंदिर से बाहर आए सिंधिया ने वहां मौजूद संवाद माध्यमों से चर्चा में कहा–उनकी बुधवार को संपन्न रथ-यात्रा में उन्हें ग्वालियर-मुरैना में जो स्नेह मिला है उससे मैं अभिभूत हूं, कृतज्ञ हूं। जो आशीर्वाद मुझे मिला है उसके लिए में हमेशा ऋणी रहूंगा।
केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने बताया कि मांढरे वाली माता के मंदिर में पूर्वजों के काल से उनकी पारिवारिक आस्था है। उन्होंने कहा कि मेरी दादी और पिताजी यहां दर्शनार्थी बने रहे हैं और मैं भी यहां सिर झुकाता हूं और हमेशा यहां आशीर्वाद लेने आता रहूंगा। सिंधिया ने कहा–मेरा जीवन जनसेवा, विकास के लिए समर्पित है, मध्यप्रदेश व ग्वालियर-चंबल अंचल के विकास के लिए मैं काम कर रहा हूँ और हमेशा करता रहूंगा।
अषटभुजा महिषासुर मर्दिना मां काली हैं सिंधिया राजवंश की कुलदेवी
– करीब 137 साल पहले जयाजी राव सिंधिया की फौज में आनंदराव मांढरे कर्नल थे।
– महाराज जयाजी राव और कर्नल मांढरे को कुलदेवी मां काली सपने में आकर आने वाले खतरे से आगाह करने लगीं।
– कर्नल मांढरे और जयाजी महाराज को सपने में मिलने वाली जानकारी सटीक साबित होने लगी।
– इन सपनों से महाराज जयाजीराव को राजकाज के फैसलों में आसानी होने लगी।
– कर्नल मांढरे को सपने में मां काली ने सिंधिया राजवंश के साम्राज्य को स्थाई बनाने के लिए एक मंदिर बनावाने का आदेश दिया।
– महाराज जयाजीराव को सपने के बारे में बताया तो मंदिर बनाने के लिए कर्नल मांढरे को ही आदेश दिया गया।
– तब से कर्नल आनंदराव मांढरे के ही वंशज इस मंदिर की देखरेख करते आरहे हैं।
– इसी वजह से सिंधिया राजवंश की कुलदेवी के मंदिर को मांढरे वाली माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
आनंदराव मांढरे ने महाराज जयाजीराव के आदेश से मंदिर बनवाया, इसलिए हैं मांढरे वाली माता
– जयाजी महाराज ने जयविलास पैलेस के सामने ही एक पहाड़ी पर माता का मंदिर बनाने का आदेश दिया।
– कर्नल मांढरे ने मंदिर में अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली की प्रतिमा को स्थापित किया।
– जयाजी महाराज माता की भक्ति ऐसे समर्पित हुए कि उनके लिए सुबह उठते ही प्रथम दर्शन और शाम को सोने से पहले दर्शन जरूरी हो गए।
– इसके लिए उन्होंने अपने कमरे में एक विशेष झरोखा बनवाया, और इस झरोखे में एक दूरबीन लगवाई।
– महाराजा जयाजीराव ने सुबह उठते ही प्रथम दर्शन और रात सोने से पहले कुलदेवी के दर्शन को नियम बना लिया।