रायपुर, 09 अप्रेल। नक्सलियों द्वारा बंधक बनाए गए कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास को 6 दिन नक्सलियों के कब्जे में रखे जाने के बाद गुरुवार को सही सलामत रिहा करा लिया गया। राकेश्वर को पद्मश्री समाजसेवी धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में बनी टीम ने आजाद कराया। इसके बदले में मउठभेड़ के तत्काल बाद पकड़े गए दो आदिवासियों को सुरक्षाबलों के कब्जे से रिहा किया गया। ऐन रवानगी के वक्त आक्रोशित आदिवासियों में शुरू हो चुका था रिहाई का विरोध….

आदिवासियों की पंचायत में राकेश्वर सिंह की रिहाई का फैसला लिया गया था, लेकिन उन्हें रवाना करते वक्त किसी बात पर आदिवासी आक्रोशित होने लगे थे। मध्यस्थ और पत्रकार राक्श्वर सिंह को लेकर रवाना होने में थोड़ी और देर करते तो पंचायत का फैसला बदल भी सकता था। पंचायत में शामिल आदिवासियों ने मांग की अब सुरक्षाबल किसी आदिवासी को गिरफ्तार करेंगे तो उसकी रिहाई के लिए भी इसी तरह मध्यस्थता करनी होगी।  

ज्ञातव्य है कि छत्तीसगढ़ में बीजापुर के टेकलगुड़ा इलाके में हुई मुठभेड़ में नक्सलियों ने CRPF कमांडो राकेश्वर को बंदी बना लिया था। बाद में उनकी तस्वीर जारी कर उन्हें सकुशल बताकर उनकी रिहाई के लिए मध्यस्थता की शर्तें बताई गई थीं।

कमांडो राकेश्वर के बदले छोड़ने पड़े मुठभेड़ के दौरान पकड़े गए 2 आदिवासी

कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की रिहाई छुड़ाने के लिए सरकार और नक्सलियों के बीच एक सीक्रेट डील हुई थी। डील उजागर तब हुई राकेश्वर की रिहाई के लिए तय टीम मध्यस्थों के साथ नक्सलियों के बताए ठिकाने पर पहुंची। दरअसल टीम के साथ बीजापुर मुठभेड़ स्थल से सुरक्षाबलों के कब्जे में आए कुंजाम सुक्का और उसके एक साथी आदिवासी को अपने कब्जे में ले लिया था। नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को छोड़ने के बदले इनकी रिहाई की शर्त रखी थी। इन्हें नक्सलियों के हवाले करने के बाद ही नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह को मध्यस्थों के हवाले किया। 

ये हैं कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह की रिहाई के हीरो

राकेश्वर को छुड़ाने के लिए धर्मपाल सैनी के साथ गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बोरैय्या, रिटायर्ड शिक्षक जयरुद्र कर्रे और बीजापुर के मुरतुंडा की सरपंच सुखमती हक्का ने मध्यस्थता में अहम भूमिका निभाई। ज्ञातव्य है कि धर्मपाल सेनी की ख्याति बस्तर के गांधी रूप में है। जय रुद्र दंतेवाड़ा के रिटायर्ड शिक्षक हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही वे धर्मपाल सैनी से जुड़कर काम करने लगे। वहीं, मुरदंडा के रहने वाले तेलम बोरैया भी पूर्व शिक्षक हैं। पिछले चार साल से वे गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं। धर्मपाल सैनी की बात करें तो वे 92 साल के हो चुके हैं। बालिका शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। वे सालों से बस्तर में आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं। इन सबके अलावा सुखमती हक्का ने भी मध्यस्थता में अपनी भूमिकी निभाई। वे मुरदंडा की पूर्व सरपंच रह चुकी हैं। फिलहाल वह एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही गोंडवाना समाज की उपाध्यक्ष भी हैं।

कमांडो की रिहाई की लाइव कहानी  

नक्सलियों ने सरकार से मांग रखी थी कि निष्पक्ष मध्यस्थों को भेजें, हम जवान को छोड़ देंगे। एक पत्रकार ने बताया- रिहाई की अदला बदली के लिए वही स्थान तय किया गया था, जहां मुठभेड़ हुई थी। वहां 20 गांवों के दो हजार से भी ज्यादा आदिवासी मौजूद थे। टीम के साथ गए पत्रकार ने बताया कि वह सब यह देखकर डर गए थे कि भीड़ अगर आक्रोशित हुई तो कुछ भी हो सकता था। नक्सली वहां मौजूद गांव के लोगों, पत्रकारों और मध्यस्थों पर कड़ी निगरानी बनाए हुए थे। मध्यस्थों के पहुंचने पर पहले जवान को नहीं लाया गया। नक्सलियों ने पहले पूरे माहौल को भांपा, थोड़ी देर बाद जंगल की तरफ कुछ हलचल हुई। करीब 35 से 40 हथियार बंद नक्सली कमांडो राकेश्वर सिंह को लेकर आए। इसके बाद नक्सलियों ने पूरे इलाके को घेर लिया। कुछ ने मध्यस्थता करने वालों को भी घेरे में ले लिया।

थोड़ी देर और रुकती रवानगी तो….

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ये नक्सली पामेड एरिया कमेटी के थे। इनके साथ एक महिला नक्सली थी जो पूरे नक्सलियों को लीड कर रही थी। आते ही नक्सलियों ने पत्रकारों से कह दिया कि कोई भी कैमरा ऑन नहीं करेगा। नक्सलियों ने वार्ता करने आई आदिवासी समाज की तेलम बौरैया और सुखमति हक्का को बुलाकर कुछ देर बातें कीं। पंचायत ने राकेश्वर सिंह को रिहा करने की स्वीकृति दे दी। शाम को राकेश्वर सिंह को छोड़ने के वक्त अचानक ग्रामीणों में आक्रोशित नज़र आने लगा था। ग्रामीण कहने लगे थे कि CRPF के कमांडो को छोड़कर गलती कर रहे हैं, इसे मत छोड़ो, मत रिहा करो। हंगामा बढ़ता, इससे पहले ही जवान को लेकर मध्यस्थ और पत्रकार तेजी से बाइक से रवाना हो गए। जाते-जाते नक्सलियों और बहुत से ग्रामीणों ने पत्रकारों और मध्यस्थों के सामने ये शर्त भी रख दी कि आने वाले दिनों में जब फोर्स के लोग आदिवासियों को हिरासत में लें तो उन्हें छुड़ाने के लिए भी इसी तरह की वार्ता और मध्यस्थता और करनी होगी।

गोली लगने से बेहोश हो गए थे राकेश्वर सिंह, आंख खुली तो सामने था नक्सल केंप

नक्सलियों के चंगुल से सकुशल लौटने के बाद राकेश्वर सिंह ने बताया कि वे हमले के बाद बेहोश हो गए थे। जब होश आया तो नक्सलियों ने बताया कि उन्हें बंदी बना लिया गया है। उन्होंने बताया कि नक्सली छह दिन तक उन्हें अलग-अलग गांव में घुमाते रहे। हालांकि, किसी ने उनके साथ बुरा सुलूक नहीं किया।

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