धर्मेंद्र शर्मा 

मुरैना 23 दिसंबर। दो जून की रोटी के लिए भी मुरैना के ग्रामीण किशोरों को जान जोखिम में डालनी पड़ती है। ये नाबालिग किशोर चंबल में फेंके गए सिक्कों के निकालने के लिए ख़तरनाक घड़ियालों और मगरमच्छों के बीच घंटों तक हवा भरे ट्यूब की नाव पर तैरते रहते हैं। चंद सिक्कों की खातिर मौत के मुंह में तैरते हैं चंबल अंचल के किशोर….  

मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमात तय करती चंबल में चंद सिक्कों की जुगत में मौत का खेल खेलते हैं। सेंक्चुरी होने की वजह से चंबल के इस इलाके में देश में सबसे ज्यादा घड़ियाल औऱ मगरमच्छों का जमघट बना रहता है। इसके किनारे बसने वाले मल्लाह परिवारों का जीवन निर्वाह चंबल से ही चलता है। जब काम नहीं बचता तो मज़बूरी में इन परिवारों के बच्चे मगरमच्छों के इसी जमघट के बीच हवा भरे ट्यूब पर सवार हो कर सुबह सात बजे से जुटते हैं। कंपकंपाती सर्दी में भी इनका क्रम नहीं टूटता, क्योंकि अगर ये एक भी दिन नागा कर देंगे तो नदी के खतरों से जूझ मिलने वाले 50-100 रुपए से भी वंचित हो जाएंगे।

रबर ट्यूब पर सवार हो चुंबक से निकालते हैं पैसे

इन किशोरों को मालूम है कि चंबल की गहराई और इसमें हर जगह मंडराते मगरमच्छ-घड़ियाल कभी भी जान ले सकते हैं, लेकिन खुद की पढ़ाई और घर का खर्च चलाने के लिए ये खतरा इनकी विवशता है। रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने इन किशोरों की यह जद्दोज़हद चम्बल नदी के रेल व बस पुल के नीचे हवा भरे रबर ट्यूब पर बैठकर सुबह सात बजे से दोपहर तक जारी रहती है। इसके लिए ये रस्सी में चुम्बक के बांध कर उसे नदी की गहराई में डालते हैं और सिक्के चिपकने पर ऊपर खींच लेते हैं। दरअसल नदी की तलहटी में यह सिक्के पुल के ऊपर से गुजर रहे लोग चंबल में श्रद्धा के तौर पर फेंके जाते है।

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