ग्वालियर, 06 दिसंबर। राजस्थान के सिरोही में पाई जाने वाली बकरी अंचल के किसानों को अतिरक्त रोजगार दिलाकर खेती को फायदे का सौदा बना सकती है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (RVSKVV) ग्वालियर के वैज्ञानिक उज्जैन कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में सफलता के बाद अब ग्वालियर में भी इस नस्ल को स्थानीय परिस्थियों के अनुरूप सुधार करने में सफल हुए हैं।
दूध और मीट दोनों औषधीय गुणों से भरपूर, खुद भी कम ही होती है बीमार….
ग्वालियर KVK हुए शोध परीक्षणों में पाया गया है कि इस नस्ल की बकरी के दूध में सामान्य से ज्यादा औषधीय गुण होते हैं, साथ यह दूध भी ज्यादा देती है। इसके साथ ही विशाल आकार के कारण इसमें ज्यादा मीट भी होता है, और इस मीट में भी औषधीय गुण पाए गए हैं। केंद्र के वैज्ञानिकों ने बताया कि विषम परिस्थियों में विकसित हुई इस नस्ल के बकरे-बकरियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा होती है, इसलिए यह आसानी से बीमार नहीं होतीं, फलस्वरूप मृत्युदर कम होती है।
गाय भैंस से कम आहार, छोटे किसानों को बेहद लाभ सिरोही बकरी-बकरे का आकार सामान्य से बेहद ज्यादा होता है, और बकरी दूध भी करीब 2.5 किलो तक दे देती है। इसका आहार भी गाय-भैंस से बहुत कम होता है। छोटे किसान गाय और बकरी के कॉम्बिनेशन को अपनाकर दूध की जरूरत पूरी करने के साथ ही बकरी के मीट का व्यापार कर अच्छी अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकते हैं। KVK ग्वालियर के वैज्ञानिक डॉ.उपेंद्र प्रताप सिंह ने जानकारी दी कि यहां किसानों में इस नस्ल की मांग बहुत ज्यादा हो गई है, इसलिए तीन चार किसानों को सामूहिक रूप एक सिरोही बकरा ही दे पा रहे हैं। हालांकि उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। डॉ. उपेंद्र के अनुसार सिरोही बकरे की विशेषत यह भी है कि इससे सामान्य बकरी की ब्रीडिंग कराने पर भी सिरोही नस्ल का बच्चा ही पैदा होता है।