ग्वालियर, 26 अक्टूबर। बाबा गंगादास की शाला में दशहरे पर हर साल आज भी उस तोप को पूज कर गोला दागा जाता है, जिसकी मदद से साधुओं ने रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान की रक्षा में अंग्रेज फौज को रोककर रखा था। इस तोप के साथ ही 1858 में उस दौरान शहीद हुए साधुओं के और रानी के कुछ हथियार आज भी बाबा गंगादास की शाला में सहेज कर रखे गए हैं। हरसाल दशहरे पर इन हथियारों को निकाल कर यहां पूजा जाता है। आखाड़े के साधु आज भी युद्धाभ्यास कर साहस की उस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। हम भारतीय उस बलिदान को भूलते जा रहे हैं, लेकिन khabarkhabaronki.com पर प्रस्तुत है उस बलिदान की कहानी और उस निशानी का जीवंत VIDOE…..  

आज भी गरजती है वो तोप, जो 1858 में गरजी थी

जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई के साथ और बाद में उनके मृत शरीर को अंग्रेजों के हाथों में जाने से बचाने के लिए शहीद हुए साधुओं और रानी लक्ष्मीबाई के हथियार आज भी बाबा गंगादास की शाला में रखे हुए हैं। शाला के वर्तमान महंत रामसेवक दास हर दशहरे पर इन हथियारों की पूजा करते हैं। इन हथियारों में शामिल इस छोटी तोप को भी दागा जाता है। ये तोप आज भी धमाके के साथ उसी तरह गूंजती है, जिस तरह 1858 में रानी की सुरक्षा में घंटों तक अंग्रेजों को शाला के बाहर रोकते वक्त गरजती रही थी।

रानी के साथ साधुओं ने दी थी शहादत

अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में ही 1858 में शहादत दी थी। रानी ने बाबा गंगादास से वचन लिया था कि उनका मृत शरीर अंग्रेजों के कब्जे में न जाने पाए। रानी जब लड़ते-लड़ते बुरी तरह जख्मी हो गईं, तो उनके साथ युद्ध कर रहे सैनिक उन्हें बाबा गंगादास की शाला में ले आए थे। उनका पीछा करते हुए अंग्रेजी फौज भी जा पहुंची, और बाबा गंगादास को चेतावनी दी गई, कि रानी को उनके हवाले कर दिया जाए। जवाब में शाला में रहने वाले करीब 700 साधुओं ने अंग्रेजी फौज पर हमला कर दिया। घमासान युद्ध में सभी साधु शहीद हो गए थे, लेकिन उन्होंने छोटी सी तोपों और अपने युद्ध कौशल से अंग्रेजों की बड़ी फौज को तब तक रोक कर रखा था, जब तक कि बाबा गंगादास ने रानी का अंतिम संस्कार नहीं कर दिया, और उनके बेटे दामोदर को अज्ञात स्थान के लिए सुरक्षित रवाना नहीं कर दिया।

सारी कहानी जानिये  इन बिंदुओं में

– 18 जून 1858 को अंग्रेजों से युद्ध करते हुए जब रानी लक्ष्मीबाई घिर गईं तो उनकी मदद के लिए बाबा गंगादास की शाला के करीब 400 साधु रानी के पास जा पहुंचे और अंग्रेजी फौज में मारकाट मचा दी थी।

– इधर बाबा गंगादास ने राजकुमार दामोदर को अपने विश्वस्त साधुओं की एक सशस्त्र टुकड़ी के साथ इंदौर के अपने एक खुफिया ठिकाने पर रवाना करवा दिया।

– युद्ध-स्थल से मिल रही सूचनाओ से बाबा गंगादास को अहसास हो गया था कि रानी की शहादत किसी भी क्षण हो सकती है।

– लिहाजा उन्होंने रानी के साथ लड़ रहे साधुओं को संदेश पहुंचाया था कि रानी की देह अंग्रेजों के हाथ नहीं लगनी चाहिए।

– लिहाजा रानी के शहीद होते ही साधु उनके शरीर को शाला में ले आए।

– शाला में बाबा गंगादास ने साधुओं की कुटिया के घासफूस से रानी के लिए चिता बना कर रखी थी।

– रानी का शरीर आते ही उनकी अंतिम संस्कार कर दिया गया था।

– पीछा करते हुए आई अंग्रेज फौज को रानी की चिता की राख ही मिली थी।

– बौखलाए अंग्रेजों ने गंगादास की शाला पर तोप के गोलों की बौछार कर दी। करीब 700 साधु उस युद्ध में शहीद हो गए थे।

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