वाशिंगटन। अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी दोनों ही इस बात एक राय रखते हैं कि उसके दबदबे को चुनौती चीन ही दे सकता है। 1991 में शीत युद्ध के बाद से अमेरिका दुनिया की अकेली महाशक्ति रहा है। लेकिन अब अमेरिका को चीन से चुनौती मिल रही है।

अमेरिका के दो जानकारों ने इसी चुनौती का जिक्र अपनी किताब में किया है। दोनों ने यह बताया है कि अमेरिका कैसे इस चुनौती पर विजय पा सकता है। अपने जन्मस्थान रूस से युवास्थव में अमेरिका जा बसने वाले दिमित्री एलपेरोविच वॉशिंगटन में एक थिंक टैंक के चेयरमैन हैं, और गैरेट ग्राफ जर्नलिस्ट। दिमत्री के नाम यूक्रेन पर रूस के हमला करने की भविष्यवाणी का श्रेय भी है। दोनों ने चीन को काबू में करने के लिए जो उपाय सुझाए हैं, उनमें से कुछ पर अमेरिकी प्रशासन ने अमल भी शुरू कर दिया है। इसमें चिप टेक्नॉलजी के निर्यात पर नियंत्रण, सप्लाई चेन को सुरक्षित बनाने और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस में रिसर्च फंडिंग जैसी बातें शामिल हैं, लेकिन कुछ उपाय भी हैं, जिन पर अमल नहीं हो रहा है। इसमें यूक्रेन युद्ध के सबक भी शामिल हैं। लेखकों का सुझाव है कि अमेरिका को अपने रक्षा खर्च के ढांचे में बदलाव करना चाहिए। अमेरिका को एफ-16 जैसे महंगे हथियारों के बजाय भरोसेमंद और जिनका अधिक प्रॉडक्शन किया जा सके, वैसे हथियारों पर अधिक ध्यान देना होगा। इस सिलसिले में वे जेवलिन मिसाइल का जिक्र करते हैं।

इसके अलावा किताब उन बातों पर इशारा करती है, जिससे चीन प्रभावित हो सकता है। मसलन- चीन में युवा कामकाजी आबादी कम हो रही है और बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि चीन मध्यम आय वर्ग वाला देश बनकर न रह जाए। अगर ऐसा हुआ, तब उसका अमेरिका से बड़ी अर्थव्यवस्था बनना मुश्किल हो जाएगा। चीन फ्यूल और खाने की चीजों के लिए भी दूसरे देशों पर आश्रित है, जो उसका कमजोर पक्ष है। लेकिन इन बातों के साथ लेखक यह सलाह भी देते हैं कि अमेरिका को अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए सजग रहना होगा। खासतौर पर डेमोग्राफी, टेक्नॉलजिकल और जियो-पॉलिटिकल बढ़त पर।

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