दिसपुर । असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि बांग्लादेश मूल के बंगाली भाषी प्रवासी मुसलमान कुछ शर्तें मान लें तो उन्हे मूल निवासी का दर्जा दिया जा सकता है। इसके लिए सीएम ने पहली शर्त रखी कि वे न तो दो से ज्यादा बच्चे पैदा करें और न ही एक से अधिक शादी करें। उन्होंने कहा कि यह असमिया लोगों की संस्कृति नहीं है। यदि बांग्लागेशी मुसलमान भारतीय बनना चाहते हैं तो वे अपनी नाबालिग बेटियों की शादी नहीं कर सकते हैं। आपको बता दें कि बांग्लादेशी मुसलमानों को मिया भी कहा जाता है।

मुख्यमंत्री ने इस बात का आश्चर्य जताया कि बंगाली भाषी मुसलमान वैष्णव मठ की भूमि पर अतिक्रमण भी करते हैं और भारतीय होने का दावा भी करते हैं। सरमा ने कहा, यदि आप स्वदेशी कहलाना चाहते हैं तो अपने बच्चों को मदरसों में भेजने के बजाय उन्हें डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए शिक्षित करें। उन्हें अपनी बेटियों को भी स्कूल भेजना शुरू करना चाहिए और उन्हें अपने पिता की संपत्तियों पर अधिकार देना चाहिए।सरमा ने कहा, यह उनके और असम के मूल लोगों के बीच अंतर है। यदि वे इन प्रथाओं को छोड़ सकते हैं और असमिया लोगों की संस्कृति को अपना सकते हैं तो किसी समय वे भी स्वदेशी बन सकते हैं। आपको बता दें कि इन मुसलमानों के पास बांग्लादेश का कोई इतिहास नहीं है। इन्हें स्वदेशी असमिया मुसलमान कहा जाता है। हालांकि असम में मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी मूल के मुसलमानों का है। असमिया भाषी मुस्लिम कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 37% हैं। वहीं, प्रवासी बंगाली भाषी मुस्लिम 63% हैं। कैबिनेट द्वारा अनुमोदित स्वदेशी असमिया मुसलमानों में पांच समूह शामिल हैं। वे हैं गोरिया, मोरिया, जोला (केवल चाय बागानों में रहने वाले), देसी और सैयद (केवल असमिया भाषी)।

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