दिल्ली । गुजरात के बहुचर्चित बिलकिस बानो केस में आज सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला दिया है इसमें गुजरात सरकार द्वारा इस मामले के 11 आरोपियो को समय से पहले रिहा करने के आदेश को निरस्त कर दिया । सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए यह फैसला सुनाया की सज़ा महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने सुनाई तो गुजरात सरकार रिहाई का आदेश कैसे कर सकती है ? फैसला सुनाते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइँया ने सुनवाई के समय कहा – सज़ा अपराध रोकने के लिए दी जाती है ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहाकि गुजरात सरकार को अपराधियों की रिहाई के कोई अधिकार नहीं है । आखिर वह दोषियों को कैसे माफ कर सकती है ? सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है तो इसको लेकर सारा अधिकार महाराष्ट्र सरकार को है क्योंकि जिस राज्य में अपराधी पर मुकद्दमा चलता है और सज़ा दी जाती है उंसकी सज़ा माफी की याचिका पर निर्णय भी उसी राज्य की सरकार को करने का अधिकार है।
यह है बिलकिस बानो केस
यह केस 2002 का है जब 3 मार्च को गुजरात मे दंगे भड़के थे । दंगो के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में रँधिकपुर गाँव मे भीड़ बिलकिस बानो के घर मे घुस गई थी और उसने परिवार के 17 में से 7 सदस्यों की हत्या कर दी थी और 22 साल की गर्भवती बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया। घर के छह सदस्य गायब हो गए जो कभी नही लौटे । हमले में सिर्फ बिलकिस ,एक तीन साल का बच्चा और एक सख्स ही जीवित बचा था।
बिलकिस ने इस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी । मामला सीबीआई को सौंपा गया। आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया। जनवरी 2008 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 11 आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई और इन सबको मुम्बई की आर्थर रोड़ जेल में रखा गया। अपराधियों ने इस सज़ा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील भी की जिसमे भी कोर्ट ने सज़ा को बहाल रखा। इस दौरान इन्हें नासिक जेल में भी रखा गया। करीब 9 साल बाद सभी को गुजरात की गोधरा जेल भेज दिया गया लेकिन गुजरात सरकार ने इसके सभी अपराधियो को आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया ।
बिलकिस बानो ने इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और इसे गलत बताया कि सज़ा महाराष्ट्र मे हुई तो गुजरात सरकार रिहा नही कर सकती।