वाराणसी । हर साल दिसंबर महीने में हजारों साइब्रेरियन पक्षियों से गुलजार रहने वाले वाराणसी के गंगा घाटों पर इस बार वीरानी छाई हुई है। इस बार इनकी संख्या काफी कम दिखाई दे रहीं हैं। ‎जिसकी वजह रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध बताया जा रहा है। जानकार बता रहे हैं ‎कि इस युद्ध का असर अब वहां के वातावरण के साथ वहां रहने वाले पशु पक्षियों पर भी देखने को मिल रहा है। बीएचयू के एक्सपर्ट की माने तो रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण तेज आवाज और प्रदूषण के वजह से साइब्रेरियन बर्ड्स विचलित हुए है जिससे कारण वाराणसी में उनकी संख्या कम दिख रही है। गौरतलब है कि साइबेरियन पक्षियों की सैकड़ों ऐसी प्रजातियां हैं जो हर साल अपना घर छोड़कर दुनियाभर में पनाह लेती हैं। भारत आने वाले साइब्रेरियन पक्षियों में साइबेरियन क्रेन, ब्लू टेल्ड बी ईटर, रूडी शेल्डक, यूरेशियन गौरैया, रफ बर्ड, रोज़ी पेलिकन, ब्लैक टेल्ड गॉडविट शमिल हैं। भारत आने के लिए ये पक्षी 6000 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा सफ़र उड़कर पूरा करते हैं। ये पक्षी ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आते हैं। इतना लम्बा सफर ये 10,20 के समूह में नहीं लाखों के ग्रुप में उड़ते हुए पूरा करते हैं। प्रोफेसर चांदना हलदार ने बताया कि हर साल की अपेक्षा इस बार गंगा के घाटों पर इनकी संख्या काफी कम है। हालां‎कि उनके वापस आने की उम्मीद भी है। यहां गौरतलब है कि हर साल यह विदेशी परिंदे हजारों किलोमीटर का सफर तय कर ठंड के सीजन में रूस से लगे महासागर के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र से काशी और आस पास के गंगा से तटीय इलाकों में आते है। मौसम में बदलाव शुरू होते ही हजारों की तादात में साइब्रेरियन पक्षी भारतीय मैदानों की तरफ उड़ान भरना शुरू कर देते है। बगैर किसी जीपीएस की मदद के ये पक्षी करीब छह हजार किलोमीटर का सफर तय कर बनारस पहुंच जाते है। ठंड के सीजन में भोजन और वातानुकूलित जगह की तलाश में यह विदेशी परिंदे यहां आते है। जिसके बाद काशी के खूबसूरत घाटों की खूबसूरती में चार चांद लग जाता है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी यह ‎विदेशी परिंदे ‎विशेष रुप से आकर्षण का केंद्र बने होते है।

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