अरब और इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों का एक प्रतिनिधिमंडल करेगा बैठक
बीजिंग । इजरायल-हमास की जंग में चीन को युद्ध खत्म करने के लिए चर्चा कराने का मौका मिल रहा है। जानकारी मिली है कि इसी बीच चार बड़े इस्लामिक देश चीन में बैठक करने जा रहे हैं। इसमें पेलेस्टाइन (फिलिस्तीन) अथॉरिटी के प्रतिनिधिमंडल शामिल होने जा रहे हैं। संभावनाएं जताए जा रही हैं कि इस बैठक के दौरान संघर्ष को शांत करने पर बड़ी चर्चाएं हो सकती हैं। खास बात है कि चीन जारी युद्ध को खत्म करने की अपील कर रहा है। अरब और इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों का एक प्रतिनिधिमंडल 20 से 21 नवंबर तक चीन के दौरे पर रहेगा। हमास और इजरायल युद्ध के बीच इस बैठक को काफी अहम माना जा रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों में सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद, जॉर्डन के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री अयमान सफादी, मिस्र के विदेश मंत्री समेह शौकरी, इंडोनेशियाई विदेश मंत्री रेटनो मार्सुडी, फिलिस्तीनी विदेश मंत्री रियाद अल-मलिकी और इस्लामिक सहयोग संगठन के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा शामिल हैं।
इस दौरान माओ ने कहा कि यात्रा के दौरान, चीन मौजूदा फिलिस्तीनी-इजरायली संघर्ष को कम करने, नागरिकों की रक्षा करने और फिलिस्तीनी प्रश्न का उचित समाधान खोजने के तरीकों पर प्रतिनिधिमंडल के साथ गहन संचार तथा समन्वय करेगा। चीन ऐतिहासिक तौर पर फिलिस्तीन का हमदर्द रहा है और द्विराष्ट्र के समाधान का समर्थन करता रहा है। बीते महीने भी विदेश मंत्री वांग यी ने फिलिस्तीन अथॉरिटी के विदेश मंत्री रियाद अल मालिकी से बात की थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फिलिस्तीन के लिए बीजिंग अपनी सहानुभूति व्यक्त करता है। जो बाइडेन ने कहा कि वह वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी नागरिकों पर हमला करने वाले इजरायली चरमपंथियों पर वीजा प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बाइडेन ने कहा कि हम शांति के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वेस्ट बैंक को एक फिलिस्तीनी प्राधिकरण शासन के अधीन होना चाहिए। बाइडेन ने कहा कि इस क्षेत्र में फिलिस्तीनी नागरिकों खिलाफ चरमपंथी हिंसा रुकनी चाहिए और हिंसा करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। यहां हिंसा करने वाले इजरायली नागरिकों पर अमेरिका वीजा प्रतिबंध लगा सकता है। अगर ऐसा होता है तो 2021 में सत्ता संभालने के बाद इजरायल के खिलाफ अमेरिका का ये सबसे कड़ा कदम होगा।