नई दिल्ली । भारतीय चंद्रयान-3 ने वैज्ञानिकों को बहुमूल्य डेटा और चंद्रमा का पता लगाने के लिए और प्रेरणा दी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इनके नतीजों को दुनिया से साझा किया है। चंद्रयान 3 के प्रज्ञान रोवर ने चांद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। चंद्रयान के प्रज्ञान रोवर के डेटा से पता चला है कि इसकी मिट्टी में लोहा, टाइटेनियम, एल्युमिनियम और कैल्शियम हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों को हैरान करने के लिए इसमें सल्फर भी मिला है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में भौतिकी, कला और विज्ञान के रिसर्च प्रोफेसर जेफरी गिलिस डेविस ने एक लेख में कहा, हमारे जैसे ग्रह वैज्ञानिकों को पता है कि चंद्रमा की मिट्टी में सल्फर मौजूद है। लेकिन यह बहुत कम सांद्रता में है। लेकिन चंद्रयान के डेटा के मुताबिक यह ज्यादा हो सकता है। प्रज्ञान के पास दो उपकरण हैं। एक अल्फा कण एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर और एक लेजर वाला ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर।
ये मिट्टी की मौलिक संरचना का विश्लेषण करते हैं। इन दोनों ने लैंडिग स्थल के पास की मिट्टी में सल्फर को खोजा है। चंद्रमा के ध्रुवों के पास की मिट्टी में मौजूद सल्फर चांद पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को दूर रहने में मदद कर सकता है। यह नया डेटा विज्ञान का एक उदाहरण बन जाएगा। चांद पर मुख्य तौर पर दो तरह की चट्टानें हैं। एक गहरी ज्वालामुखी चट्टान और दूसरी चमकीली भूमि। इन्हीं दोनों के कारण हमें चांद पर एक चेहरे जैसी छवि दिखाई देती है। पृथ्वी पर प्रयोगशालोओं में चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी की संरचना को मापने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि गहरे ज्वालामुखीय मौदानों की सामग्रियों में चमकीले उच्चभूमि वाले पदार्थों की तुलना में ज्यादा सल्फर होता है। सल्फर आम तौर पर ज्वालामुखी घटनाओं के कारण मिलता है।
चंद्रमा की गहराई में मौजूद चट्टानों में सल्फर होता है और जब ये चट्टानें पिघलती हैं तो सल्फर मैग्मा का हिस्सा बन जाता है। जब पिघली हुई चट्टान सतह के करीब आती है तो ज्यादातर सल्फर गैस बनकर जल वाष्प और कार्बन डाईऑक्साइड के साथ निकलता है। प्रोफेसर जेफरी ने इसी लेख में लिखा कि लंबे समय से स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष में अपना बेस बनाना चाहती हैं। सल्फर का इस्तेमाल एक संसाधन के तौर पर सौर सेल और बैटरी बनाने में किया जा सकता है। सल्फर आधारित उर्वरक और निर्माण के लिए सल्फर आधारित कंक्रीट बनाते हैं। सल्फर आधारित कंक्रीट के कई फायदे हैं। जहां नॉर्मल कंक्रीट ईंट को सूखने में हफ्ते लगते हैं तो सल्फर वाली कंक्रीट कुछ ही घंटे में मजबूत हो जाती है।
चांद पर इससे बेस तो बना ही सकते हैं। साथ ही यह पानी बचाएगा, क्योंकि सल्फर बेस कंक्रीट में पानी का इस्तेमाल नहीं होता। बता दें कि भारत का चंद्रयान 3 मिशन कामयाबी के साथ चंद्रमा पर उतर चुका है। भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, चीन और सोवियत यूनियन चांद पर पहुंचे थे। लेकिन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश है। 14 पृथ्वी दिनों में ही इसने एक महत्वूर्ण मिशन को पूरा किया है।

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