ग्वालियर, 07 अगस्त। देश में जब से COVID-19 वायरस का ख़ौफ़ गालिब हुआ डरे हुए लोगों ने चिकन-मटन और दूसरे मांसाहार लगभग छोड़ ही दिया है। हालांकि इसका फायदा मध्यप्रदेश में झाबुआ के देशी ‘कड़कनाथ-चिकन’ को हुआ। झाबुआ के ठेठ देशी कालामासी मुर्गा की प्रजाति को झाबुआ-अलीराजपुर के अलावा प्रदेश व देश के दूसरे हिस्सों में बढ़ाने में जुटे कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) ग्वालियर के प्रभारी डॉ.राज सिंह कुशवाह ने बताया कि इसके इम्युनिटी बूस्टिंग और दूसरे औषधीय गुणों और लाजवाब स्वाद की वजह से कोरोना काल में इसकी मांग 10 गुनी तक बढ़ गई।‘कड़कनाथ’ के गुणों की वजह से चिकन प्रेमियों को कोरोनाकाल में भी न सिर्फ मनपसंद पकवान मिल रहा है, बल्कि COVID-19 के डर से भी राहत मिली है।
स्वाद, सेहत और इम्युनिटी बूस्टर है कड़कनाथ, इसमें कोलेस्ट्रोल नहीं होता
कोरोना संक्रमण से देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है, इसके डर से मांसाहार छोड़ चुके लोगों को चिकन का स्वाद रह-रह कर याद आता था। बाबा रामदेव की कोरोनिल किट के आने से पहले ही KVK के मध्यप्रदेश केंद्रों ने चिकन लवर्स को बताया कि कभी ज़ायके की वजह से राजा-रईसों की पसंद रहा कड़कनाथ ऐसे औषधीय गुणों की खान है कि इसके सेवन से स्वाद की तृप्ति ही नहीं, कोरोना से बचाव भी हो जाता है। डॉ.राज सिंह कुशवाह के अनुसार GI-टेग हासिल कर चुका ‘कड़कनाथ-चिकन” लो-फैट, कोलेस्ट्रोल रहित हाई प्रोटीन इम्युनो-बूस्टिंग फूड है। इसमें विटामिन B-1,B-2,B-6,B-12 समेत 25-27 प्रतिशत प्रोटीन, विटामिन C, E, नियासिन, कैल्शियम, फास्फोरस और हीमोग्लोबिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। जबकि महज़ 0.73-1.3 प्रतिशत फैट होता है। इसमें कोलेस्ट्रोल भी मात्र 184.75 मिलीग्राम होता है।
कोरोना काल में भी चिकन-प्रेमियों की दावत
इसके गुणों का पता चलने के बाद कोरोना काल में हताश बैठे प्रदेश व देश भर के होटल, रेस्टोरेंट, व स्ट्रीट ईटरीज कड़कनाथ रेसिपीज से गुलज़ार हो उठे। चिकन प्रेमियों को मेनू में बस ‘कड़कनाथ-चिकन’ की ही तलाश रहती है। हालांकि डिमांड बढ़ने के KVK की प्रतीक्षा-सूची करीब 2 महीने लंबी हो गई है।
पोल्ट्री-फार्मर्स के फ़ायदे में इज़ाफ़ा
देश भर में KVK के जरिए कड़कनाथ-चिकन की हैचिंग कर आपूर्ति करने वाले पोल्ट्री फार्मर्स इसकी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। डॉ.राज सिंह के मुताबिक KVK केंद्रों पर तो वयस्क कड़कनाथ मुर्गे की कीमत 600 रुपए और मुर्गी की 500 रुपए ही नियंत्रित रहती है, लेकिन निजी हैचरी चला रहे किसान एक मुर्गा 1000 रुपए तक में बेच रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 700 से 800 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। नर कड़कनाथ का वजन 3 से 4 किलो व मादा का 2 से 3 किलो तक होता है।
ग्वालियर के पास गिरवाई गांव के नाहर सिंह ने बताया कि अमूमन अपनी 100 अंडों की छोटी सी हैचरी से कड़कनाथ उत्पादन कर वह करीब 1-1.5 लाख सालाना तक कमा रहे हैं। हालांकि कोरोन काल में मार्च के अंतिम सप्ताह से अब तक वह साल भर के करीब बराबर कमाई कर चुके हैं। हालांकि KVK में भी मांग अधिक होने की वजह से हैचिंग के लिए अंडे सीमित मात्रा में ही मिल पा रहे है।
कड़कनाथ के नाखून से कलगी तक काली, खून, मांस और हड्डी भी काली
वयस्क कड़नाथ मुर्गे में नाखून से कलगी तक औऱ खून-मांस से अस्थि और अस्थि-मज्जा (Bone Marrow) तक सुन्न काली होती है। मध्यप्रदेश के झाबुआ-अलीराजपुर में पाई जाने वाली कुक्कुट प्रजाति के संवर्धन के लिए सबसे पहले1978 में झाबुआ में ही स्थापित हुआ था। इसके बाद KVK ने 2011 में इसका उत्पाद बढ़ाने तथा झाबुआ से बाहर देश प्रदेश के दूसरे केंद्रों में इसकी ब्रीडिंग की परियोजना शुरू की, और 2012-13 इसे विस्तार मिला। ग्वालियर में भी KVK 2016 से कड़कनाथ-चिकन की ब्रीडिंग 100 चूजों से की। तब से अब तक KVK ब्रीडिंग संवर्धन में जुटा हुआ है। राजमाता विजया राजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध KVK के स्थानीय प्रभारी डॉ.राज सिंह कुशवाह ने जानकारी दी कि 18 दिन के इनक्यूबेशन में हमारा केंद्र करीब 1000 चूजे पैदा कर रहा है। इन चूजों को वयस्क मुर्गा बनने में करीब 40 दिन लगते हैं।