नई दिल्ली । वंदे भारत (Vande Bharat) ट्रेनों के निर्माण को लेकर भले ही रूस और भारत के बीच ‎विवाद थम गया, ले‎किन ‎हिस्सेदारी को लेकर दोनों एकमत नहीं हैं। ‎मिली जानकारी के अनुसार रूसी कंपनी मेट्रोवेगनमाश और रेल विकास निगम लिमिटेड के बीच के विवाद को सुलझा लिया गया है। दोनों कंपनियों के बीच 2029 तक 120 वंदे भारत ट्रेन बनाने और 15 साल तक उनके मेंटेनेंस का समझौता हुआ था। हालांकि, हिस्सेदारी को लेकर विवाद चल रहा था जिसे अब सुलझाने के प्रसास हो रहे है। वंदे भारत एक्सप्रेस प्रोजेक्ट भारत और रूस का जॉइंट वेंचर है। समझौते के तहत मेट्रोवेगनमाश की वंदे भारत में 70 फीसदी, आरवीएनएल की 25 फीसदी और लोकोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स की 5 फीसदी हिस्सेदारी इसमें होगी। आरवीएनएल और मेट्रोवेगनमाश के कन्सोर्टियम ने वंदे भारत एक्सप्रेस के निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। शुरुआती समझौते में आरवीएनएल के पास 25 फीसदी और मेट्रोवेगनमाश के पास 70 फीसदी शेयर्स थे। गौरतलब है ‎कि समझौते के तहत इस जॉइंट वेंचर को 120 वंदे भारत एक्सप्रेस तैयार करने थे। इनमें से हर एक्सप्रेस की लागत 120 करोड़ की होनी थी।

हालांकि, कॉन्ट्रैक्ट मिलने के बाद आरवीएनएल (RVNL) ने मेट्रोवेगनमाश से मेजॉरिटी शेयरहोल्डिंग की मांग की। आरवीएनएल ने जॉइंट वेंचर में 69 फीसदी की हिस्सेदारी की मांग की और मेट्रोवेगनवॉश की हिस्सेदारी को 70 से घटाकर 26 फीसदी रखने की मांग की। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आरवीएनएल का कहना था कि वंदे भारत प्रोजेक्ट के लिए कई स्पेयर पार्ट्स पश्चिमी यूरोप और अमेरका से मंगाने होंगे। आरवीएनएल का कहना था कि रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते सप्लायर देश रूस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। आरवीएनएल का कहना था कि उसके पास मेजॉरिटी शेयर होगा तो जॉइंट वेंचर को सप्लायर देशों का कॉन्फिडेंस हासिल करने में ज्यादा आसानी होगी।

हालां‎कि इसके बाद रेल मंत्रालय और रूसी कंपनी के सीनियर अधिकारियों के बीच कई बैठकें हुईं, जिसके बाद वंदे भारत के डेडलाइन को देखते हुए, भारतीय अधिकारियों ने ओरिजिनल स्टेक होल्डिंग पर ही अपनी सहमति जता दी। कॉन्ट्रैक्ट के तहत, ये जॉइंट वेंचर जून 2025 तक तक ट्रेन के दो प्रोटोटाइप तैयार करेगा। इनके अप्रूवल के बाद हर साल 12 से 18 वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा।

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