अपहरण के मामले में 7 युवकों को झूठा फंसाने का था मामला, बिना अपराध 13 साल से भी ज्यादा समय कारागार में हुआ व्यतीत
ग्वालियर, 13 जुलाई। मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय की ग्वालियर खण्डपीठ के आदेश पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है। इस आदेश से आंतरी पुलिस थाने के तत्कालीन प्रभारी शंभू सिंह चौहान को बड़ी राहत मिली है।
उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में लगाई गई एक विशेष पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की आदेश दिया है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारी शंभू सिंह चौहान को असत्य साक्ष्य प्रस्तुत करने और अपहरण का असत्य प्रकरण पंजीबद्ध करने का आरोपी माना है। पुलिस पर अपहरण के झूठे मामले में सात निरपरधों को फंसाने का आरोप लगा था। उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में मध्यप्रदेश सरकार से इस संबंध में उत्तर मांगा है।
सूत्रों के अनुसार 2003 में पुलिस थाना बिलौआ में शांति स्वरूप ने अपने भतीजे जयशंकर के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस पर पुलिस ने कुछ दिन बाद एक मुठभेड़ में जयशंकर को छुड़ाने का दावा किया था। किंतु, पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकी थी। बाद में एक-एक कर सात लोगों को संबंधित प्रकरण में आरोपी बनाकर पकड़ा गया। पुलिस के साक्ष्यों के आधार पर सातों को नवंबर 2004 में विचारण न्यायालय (ट्रॉयल कोर्ट) ने आजीवन कारावास का दंड दिया था।
इस निर्णय के विरुद्ध आरोपियों ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में याचिका प्रस्तुत की थी। याचिका में आरोपियों ने बताया कि वह गरीब किसान हैं, उन्हें पुलिस ने वाहवाही लूटने के लिए झूठा फंसाया है। उच्च न्यायालय में पुलिस आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सकी। उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि इस मामले में युवक जयशंकर के अपहरण का मिथ्या प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था। उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे। उच्च न्यायालय ने आरोपितों को कारागार में व्यतीत 13 वर्ष सात माह के प्रतिसाद में मानहानि और क्षति-पूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करने की अनुमति भी प्रदान की थी। अक्टूबर 2017 में उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ ने सातों आरोपियों को दोषमुक्त घोषित किया था।