ग्वालियर, 07 अप्रेल। चंबल के बीहड़ों में बसे कुतवार गांव में हरसिद्धि देवी का मंदिर बना है। नवरात्रि में यहां देश भर से श्रद्धालु आते हैं। ज्ञातव्य है कि कुतवार पांडव माता कुंती का मायका है, और किंवदंती है कि हरसिद्धि देवी को महाभारत युद्ध में मदद के लिए श्रीकृष्ण की प्रेरणा व सहायता से उज्जैन से आह्वान कर अर्जुन लाए थे। उन्होंने ही कुतवार में माता का मंदिर बनवाया था। अर्जुन कुतवार में रुके तो माता हरसिद्धि भी वहीं रुक गईं…..

कोरोना संकट से उबरे देश में दो वर्ष पश्चात इन दिनों चैत्र नवरात्र धूमधाम से मनाया जा रहा है। khabarkhabaronki.com इस अवसर पर विशेष श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत कर रहा है ग्वालिय-चंबल अंचल के प्रमुख देवी मंदिरों की पावन गाथा। इसी कड़ी में जानिए महाभारत कालीन कुंती के पाण्डव माता कुंती के मायके में प्रतिष्ठित मां हरिसिद्ध देवी की रोचक कहानी….

– महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर अर्जुन ने कई जगह जाकर शक्ति की साधना की थी। उनकी साधना के वरदान स्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने पांडवों की मदद की थी।
– भगवान श्रीकृष्ण और महाभारत के महायोद्धा अर्जुन मां हरसिद्धि देवी से युद्ध में मदद की प्रार्थना करने को उज्जैन गए थे। उनकी साधना से प्रसन्न हो मां हरसिद्धि ने शर्त रखी थी कि उज्जैन के बाद जहां भी अर्जुन प्रथम आव्हान करेंगे, देवी वहीं स्थिर हो जाएंगीं।
– उज्जैन से लौटते हुए अर्जुन व श्रीकृष्ण ने माता कुंती के मायके कुंतलपुर (अब मुरैना का कुतवार) में रात्रि-विश्राम किया।

– ब्रह्म मुहूर्त में नित्य स्वाभाव के अनुरूप अर्जुन पूजा के लिए बैठे तो अन्य देवी-देवताओं के साथ हरसिद्धि देवी का आह्वान भी कर बैठे। शर्त के अनुसार देवी वहीं प्रकट हो गयीं और बोलीं कि अब मैं यहीं रहूंगी, इससे आगे नहीं जाऊंगी।

– तब अर्जुन और श्रीकृष्ण ने देवी की वहीं स्थापना कराई, और मंदिर बनवा दिया। देवी ने वचन के मुताबिक वहीं रहकर महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय में सहायता की थी।

1858 में इसी मंदिर में छिपे थे जयाजीराव सिंधिया
– ईस्ट इंडिया कंपनी के मेजर ह्यूरोज ने जब कालपी के किले को तोपों से तहसनहस कर दिया था तो रानी लक्ष्मीबाई 01 जून1858 को ग्वालियर आ गईं। रानी की सेना ने मुरार नदी के किनारे पड़ाव डाला था।
– ग्वालियर की सेना भी रेजिडेंट दिनकर राव राजबाड़े से बगावत कर होकर रानी से आ मिली थी, और ग्वालियर के किले पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया था।
– इस संघर्ष में खुद को तटस्थ बनाए रखने की कूटनीतिक कोशिश में महाराजा जयाजीराव सिंधिया ग्वालियर से भाग कर एक अज्ञात स्थान पर चले गए थे, प्रचारित किया गया था कि जयाजीराव आगरा गए हैं। विद्रोह समाप्त होने के कई सालों बाद उजागर हुआ था कि दरअसल जयाजीराव सिंधिया आगरा नहीं गए थे, बल्कि मुरैना के पास आसन नदी के किनारे बसे कुतवार के महाभारतकालीन हरसिद्धि माता के मंदिर में शरण ली थी।

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