दतिया, 06 अप्रेल। रतनगढ़ के घने जंगल में सिंध नदी के किनारे बना मां कैला देवी का मंदिर सदियों से लोगों की आस्थाओं का केन्द्र रहा है। इसी मंदिर में छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने महीनों अनुष्ठान किया। इसके बाद शिवाजी मुगल शासक औरंगजेब की कैद से छूटेकृतज्ञता व्यक्त करने महाराज शिवाजी ने इस मंदिर में आकर पीतल का घंटा चढ़ाया और मंदिर का पुनरुद्धार कराया।
कोरोना संकट से उबरे देश में दो वर्ष पश्चात इन दिनों चैत्र नवरात्र धूमधाम से मनाया जा रहा है। khabarkhabaronki.com इस अवसर पर विशेष श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत कर रहा है ग्वालियर-चंबल अंचल के प्रमुख देवी मंदिरों की पावन गाथा। इसी कड़ी में जानिए देश भर के भक्तों का श्रद्धा-केंद्र रतनगढ़ माता मंदिर की अनजानी गाथा….
- मुगलों से संघर्ष कर रहे छत्रपति शिवाजी को औरंगजेब ने छल से आगरा के किले में कैद कर लिया। उसके बाद शिवाजी के गुरू रामदास ग्वालियर आए और सीधे रतनगढ़ के मंदिर पहुंचे।
- समर्थ गुरु रामदास ने इस मंदिर में रह कर छह माह तक कठोर साधना की और शिवाजी को आगरा फोर्ट से छुड़ाने की रणनीति बनाई।
- समर्थ गुरु रामदास की रणनीति सफल हुई और शिवाजी पुत्र समेत मुगलों को चकमा देकर आगरा फोर्ट से बाहर निकल आए। आगरा से शिवाजी सीधे रतनगढ़ मंदिर पहुंचे, जहां उनके गुरू साधनारत थे।
- महाराज शिवाजी ने रतनगढ़ मंदिर में मां कैला देवी का अनुष्ठान कर घंटा समर्पित किया। जीर्णशीर्ण मंदिर के पुनरुद्धार का संकल्प ले गुरू के साथ अपनी राजधानी के लिए रवाना हो गए। बाद में उन्होंने कुमुक भेज कर मंदिर का पुनरुद्धार कराया। साथ ही मां कैलादेवी की नई प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा भी कराई।
इसके बाद तो मंदिर में परंपरा की शुरुआत हो गई और श्रृद्धालु मनौती के लिए यहां पीतल का घंटा चढ़ाने लगे। कई बार तो मंदिरों में कई टन घंटे एक नवरात्रि के सीजन में चढ़ जाते हैं। - रतनगढ़ मंदिर और उसके आसपास के जंगल डकैतों को शरणस्थली रहे हैं। चंबल के डकैत मंदिर के आसपास रहते थे और नवरात्रि पर अनुष्ठान करते थे।
छल का बदला छलः फलों की टोकरी में बैठ कर निकल आए पिता-पुत्र
- समर्थ गुरु रामदास की योजना के मुताबिक, औरंगजेब को भेंट के तौर पर फलों की टोकरियां भिजवाई जाती थीं। गुरूजी ने भी ये सिलसिला अपने एक भक्त के जरिए शुरू कराया था।
- मुगल सेना का विश्वास जीतने के बाद उस भक्त ने एक दिन दो बड़ी और कवर्ड टोकरियां भेजीं, खाली होने के बाद इन टोकरियों में शिवाजी और उनके पुत्र को बिठा कर बाहर लाया गया।
- दोनों को सीधे रतनगढ़ के जंगलों में गुरु रामदास के पास ले जाया गया। कुछ दिनों यहीं खुफिया तौर पर रहेय़ औरंगजेब की उन्हें तलाशने की गतिविधियां धीमी पड़ गईं, तब तीनों अपनी राज्य में चले गए।