ग्वालियर, 01 मार्च। मंदिरों में आमतौर पर शिवलिंग की जलहरी उत्तर की ओर रखी जाती है। कुछ विशेष मंदिर में यह दिशा दक्षिण भी हो जाती है, किंतु एक मंदिर ऐसा भी है, जहां शिवलिंग को भक्त अपनी सहूलियत से घुमाकर किसी भी दिशा में उनका मुख ले जा सकते हैं।

महाशिवरात्रि के अवसर पर khabarkhabaronki.com पर प्रस्तुत है चंबल अंचल के श्योपुर में उस ऐतिहासिक मंदिर की अभियांत्रिकी गाथा जहां भक्त अपनी इच्छा से जलहरी समेत शिवलिंग की दिशा बदल सकता है….

– श्योपुर के छार बाग मोहल्ला स्थित अष्टफलक की छत्री में स्थापित यह शिवलिंग अनूठा है।

– शिवलिंग को इस प्रकार बनाया गया है कि वह अपनी धुरी पर चारों ओर घूम सकता है।

– श्रद्धालु अपनी इच्छा के अनुसार शिवलिंग की जलहरी चारों दिशाओं में घुमा कर भोलेनाथ प्रसन्न करते हैं।

गौड़ राजा 300 साल पहले सोलापुर से लाए थे शिवलिंग
– घूमने वाले इस शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा श्योपुर के गौड़ वंशीय राजा पुरुषोत्तम दास ने सन् 1722 में करवाई थी, इसका उल्लेख इस मंदिर में लगे शिलापट्ट पर भी अंकित है।

– इस शिवालय को अब गोविंदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इससे पूर्व यह शिवलिंग सोलापुर महाराष्ट्र में बाम्बेश्वर महादेव के रूप में स्थापित था।

– गौड़ राजा शिवभक्त थे। उन्होंने शिवनगरी के रूप में शिवपुर नगर बसाया, जो अब श्योपुर के नाम से जाना जाता है।

दो भागों में लाल पत्थर से बना है शिवलिंग

– गोविंदेश्वर शिवलिंग लाल पत्थर से दो भाग में बनाया गया है। ऊपर जलहरी व शिवलिंग और नीचे पत्थर की एक धुरी।

– शिवलिंग जलहरी समेत अलग से बनी हुई धुरी पर इस तरह स्थापित है कि उसे पत्थर की धुरी पर चारों तरफ घूम जाता है।

– यह शिवलिंग 24 खंभों की छत्री की दूसरी मंजिल पर स्थित है। पहली मंजिल पर भगवान गणेश की अद्भुत प्रतिमा विराजमान है।

रात में अपने-आप बज उठती हैं घंटियां, धूमने लगता है शिवलिंग

– मान्यता है कि वर्ष में एक बार रात के समय मंदिर की घंटिया अपने आप बजने लगती हैं। आरती के पश्चात शिवलिंग घूमने लगता है।

– यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में शिवलिंग का मुख बहुधा दक्षिण की ओर रहता है, किंतु कभी कभी अपने आप उत्तर या पूर्वमुखी हो जाता है। 

– पौराणिक कथाओं अनुसार इस शिवलिंग को दक्षिणमुखी बना कर अभिषेक करने से सारे कष्टों और सर्पदोष, पितृदोष, गृहक्लेश से छुटकारा मिलता है।

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