ग्वालियर। बेटी चित्रागंदा जब 3 साल की थी, तब माधवीराजे सिंधिया ने मुंबई में बेटे  को जन्म दिया। युवराज के नामकरण के लिए सिंधिया राजपरिवार में लंबी बहस चली। माधवराव सिंधिया अपने बेटे का नाम विक्रमादित्य रखना चाहता थे, जबकि दादी विजयाराजे सिंधिया अपने कुल देवता ज्योतिबा के ऊपर नाम रखना चाहती थीं। अंत में बीच का रास्ता निकाला गया, नाम रखा गया ज्योतिरादित्य। 

01 जनवरी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्मदिन है। इस अवसर पर khabarkhabaronki.com पर प्रस्तुत है उनके नामकरण की कहानी….

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नामकरण की कहानी बड़ी रोचक है। सिंधिया राजवंश के माधवराव सिंधिया की बेटी चित्रांगदा जब तीन वर्ष की हो गईं तब राजवंश को युवराज के महारानी माधवीराजे के गर्भ में आने की खुशख़बरी मिली थी। माधवराव सिंधिया समेत समस्त राजपरिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।

राजपरिवार की प्रतीक्षा समाप्त हुई और 01 जनवरी, 1971 को माधवीराजे सिंधिया ने पुत्र को जन्म दिया।

गोद लेने की विवश परंपरा तीसरी बार टूटी, प्रसन्न था सिंधिया राजवंश

सिंधिया राजवंश के उत्तराधिकारी के जन्म लेने का यह अवसर विशेष था क्योंकि 100 साल पहले तक सिंधिया राजवंश में वारिस गोद लेना पड़ता था। जयाजी राव सिंधिया के पुत्र माधौ राव सिंधिया, और उसके बाद जीवाजीराव और माधवराव सिंधिया राजवंश के प्राकृतिक उत्तराधिकारी थे।

नामकरण पर हुआ राजमाता और उनके बेटे के बीच मंथन
पुत्र जन्म के बाद नामकरण पर सिंधिया राजपरिवार में कई दिनों तक बहस होती रही। दादी राजमात विजायाराजे की आकांक्षा थी कि पोते का नाम कुलदेवता ज्योतिबा के नाम पर रखा जाए।जबकि, माधवराव और माधवीराजे चाहते थे कि पुत्र का नाम विक्रमादित्य रखा जाए। अंत में बीच के रास्ते पर सहमति हुई, नामकरण हुआ ज्योतिरादित्य। इस नामकरण के विषय में कैलाशवासी माधवराव सिंधिया की बायोग्राफी ए-लाइफ में बताया गया है कि ज्योतिरादित्य नाम सिंधिया राजवंश की परंपरा के भी अनुरूप था। ज्ञातव्य है कि सिंधिया राजवंश में उत्तराधिकारियों के नाम जयाजी राव के बाद माधौ राव और फिर जीवाजी राव अर्थात नामाक्षर ‘ज’ फिर ‘म’ ही रखे जाते थे। जीवाजी राव के बाद माधवराव नाम रखा गया था, इसलिए ज्योतिरादित्य नाम पर सहमति बन गई।

कई महीनों तक हुआ सेलीब्रेशन
ज्योतिरादित्य सिंधिया के जन्म के बाद सिंधिया राजवंश कई माह प्रसन्नता दर्शाता रहा। कई भोज हुए, बायोग्राफी में उल्लेख है कि बिजनेस से जुड़े लोगों के लिए अलग भोज हुआ। मराठा सरदारों के बीच परंपरागत तरीके से ज्योतिरादित्य के जन्म का उत्सव मनाया जाता रहा। राजनीतक मित्रों को अलग भोज प्रसितुत किया गया। जन्म के 10 महीने बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार दशहरे पर ग्वालियर आए, तब  भी ग्वालियर में जमकर खुशियां मनाई गईं। राजपरिवार ग्वालियर के कई मंदिरों में ज्योतिरादित्य को लेकर पूजा के लिए गया।

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