ग्वालियर। काकोरी ट्रेन डकैती के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने हथियार ग्वालियर से खरीदे थे। हथियार शाहजहांपुर तक लाने के लिए बिस्मिल ग्वालियर से अपनी बहन शास्त्री देवी के कपड़ों में छिपा कर शाहजहांपुर तक लाए थे। हथियार खरीदने के लिए धन बिस्मिल ने अपनी मां मूलवती देवी से उधार लिया था। इसका उल्लेख बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में किया है। ऐसे शुरू हुआ बिस्मिल का आजादी के लिए संघर्ष…..
काकोरी कांड के नायकों को 19 दिसंबर के दिन अंग्रेजी सरकार ने फांसी दी थी। khabarkhabaronki.com पर हम प्रस्तुत करेंगे देश को स्वतंत्र कराने के मार्ग पर चलते हुए फांसी पर हंसते-गाते झूल गए काकोरी ट्रेन डकैती के नायक रामप्रसाद बिस्मिल की वीर गाथा….
पं.रामप्रसाद बिस्मिल का असली नाम रामप्रसाद सिंह तोमर था और वह मूलत: तत्कालीन ग्वालियर स्टेट में चंबल के रूअर-बरवाई गांव के निवासी थे। अकाल के दौरान उनके पिता गरीबी और पारिवारिक कलह की वजह से उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर आ गए, और क्षत्रिय होते हुए भी आर्यसमाजी पांडित्य कर्म से जीवन यापन करने लगे। इसलिए इनके नाम के आगे पंडित जोड़ दिया गया। शायरी के लिए कविनाम बिस्मिल रख लिया तो सब उन्हें पंड़त रामप्रसाद बस्मिल के नाम से जानने लगे।
बिस्मिल ने की थी HRA की स्थापना, धन जुटाने लूटा सरकारी खजाना
आर्यसमाजी माहौल में बड़े हुए बिस्मिल का खून आर्यसमाजी क्रांतिकारी भाई परमानंद को अंग्रेजों द्वारा षडयंत्रपूर्वक फांसी की सजा सुनाए जाने पर खौल उठा। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी (HRA) की स्थापना की, इसमें धीरे-धीरे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और अशफाक उल्लाह खां जैसे क्रांतिकारी विचारों के युवा जुड़ गए। क्रांति के लिए धन जुटाने अंग्रेजों के सरकारी खजानों को लूटने की रणनीति बनाई गई। इसके लिए हथियार जुटाने का जिम्मा खुद रामप्रसाद बिस्मिल ने लिया।
मां से उधार लेकर ग्वालियर से खरीदे क्रांति के हथियार, पुलिस अफसर के नौकर से चोरी कराया रिवाल्वर
बिस्मिल ने मां से किसी बहाने पांच हजार रुपए उधार लिए और ग्वालियर आ गए। उस समय ग्वालियर में सिंधिया राजवंश के हाथ में प्रशासन था इसलिए हथियारों के लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती थी। बिस्मिल ने यहां से हथियार खरीदे। बिस्मिल ग्वालियर अंचल के ही मूल निवासी थे, इसलिए अपने संपर्कों के माध्यम से एक सिकलीगर (हथियार बनाने वाली जाति) को दोस्त बना लिया। इसी सिकलीगर से बिस्मिल ने HRA के लिए 155 रुपए में 1 रिवाल्वर और 100 कारतूस खरीदे। एक रिटायर्ड पुलिस अफसर की रायफल 250 रुपए में खरीदी। एक पुलिस अफसर की रिवाल्वर बिस्मिल को अपने लिए जंच गई तो उन्होंने उसके नौकर को लालच दे रिवाल्वर चोरी कराई, और उसे 100 रुपए में खरीद लिया। इसी तरह एक माउजर चोरी कराई और 300 रुपए में खरीद ली।
बहन को विदा कराने बहाने उनके कपड़ों में छिपा लाए हथियार
रामप्रसाद बिस्मिल की छोटी बहन शास्त्री देवी की ससुराल उत्तरप्रदेश में आगरा के नजदीक पिनाहट के कोसमा गांव में थी। वहां से जंगली रास्तों से आसानी से मैनपुरी पहुंचा जा सकता था। बहन को विदा कराने के बहाने बिस्मिल उन्हें कोसमा से लेकर मैनपुरी होते हुए शाहजहांपुर तक ले आए। इनके कपड़ों में छिपा कर हथियार भी शाहजहांपुर पहुंच गए। इसके बाद कुछ किताबें लिख कर प्रकाशित कराईं और मां का उधार चुका दिया।
काकोरी में ट्रेन डकैती के लिए ग्वालियर के हथियारों ने मचाई दहशत
उत्तरप्रदेश में लखनऊ के पास काकोरी में 9 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों ने ट्रेन से ले जाए जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया। यह घटना इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जानी जाती है, लेकिन विगत वर्ष उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस दिवस का नामकरण ‘काकोरी ट्रेन एक्शन डे’ के रूप में कर दिया है।
विस्मिल और 10 साथियों ने रणनीतिपूर्वक सरकारी खजाने पर डाली डकैती
क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित तरीके से इस डकैती को क्रियान्वित किया। ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू किया गया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर क्रांतिकारियों ने खजाना लूट लिया। इस डकैती में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल और मन्मथनाथ गुप्त, शामिल थे।
बिस्मिल के कानूनी ज्ञान और धाराप्रवाह अंग्रेजी से अवाक हुए जज
मुकदमे के दौरान बिस्मिल ने धाराप्रवाह अंग्रेजी में बहस की तो चीफ जस्टिस ने उनसे पूछा- ‘मिस्टर रामप्रसाड! फ्रॉम व्हिच यूनिवर्सिटी यू हैव टेकेन द डिग्री ऑफ लॉ (मि. रामप्रसाद, आप ने कानून की डिग्री किस विश्वविद्यालय से ली) ? बिस्मिल हंसकर बोले–एक्सक्यूज मी सर! ए किंग मेकर डजन्ट रिक्वायर एनी डिग्री (क्षमा कीजिएगा श्रीमान, एक किंग मेकर के लिए किसी भी ड्ग्री की आवश्यकता नहीं होती)। इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी रोशनसिंह और अशफाक उल्लाह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई।