नई दिल्ली, 06 अगस्त। केंद्र सरकार ने राजीव गांधी खेल-रत्न पुरस्कार का नाम बदल दिया है। अब इसे मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार दोपहर ट्वीट के जरिए देश को इसकी जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने इसे 41 साल बाद हॉकी में मिले ओलंपिक पदक का उपहार करार दिया है। बेटे-बेटियों ने दिखाई जीत की ललक, 41 साल बाद हॉकी ने फिर दिलाया सम्मान, इस लिए पुरस्कार का बदला नाम….  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे पूरे भारत के नागरिकों से खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखने के लिए कई अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। उनकी भावना का सम्मान करते हुए खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार दोपहर ट्वीट कर बताया–मुझे पूरे भारत के नागरिकों से खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखने के लिए कई अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। उनकी भावना का सम्मान करते हुए, खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा।

देश का सबसे बड़ा खेल सम्मान, इसलिए हॉकी के जादूगर के नाम

खेल रत्न अवॉर्ड देश का सबसे बड़ा खेल सम्मान है। पहली बार यह पुरस्कार 1991-92 में दिया गया था। इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल क्षेत्र में शानदार और सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद भारत के उन अग्रणी खिलाड़ियों में से थे, जिन्होंने भारत को दुनियाभर में सम्मान और गौरव दिलाया। इसलिए यह बिल्कुल ठीक है कि हमारे देश के सर्वोच्च खेल सम्मान का नाम उन्हीं के नाम पर रखा जाए। उन्होंने कहा कि ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रयासों से हम सभी अभिभूत हैं। विशेषकर हॉकी में हमारे बेटे-बेटियों ने जो इच्छाशक्ति दिखाई है, जीत के प्रति जो ललक दिखाई है, वो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है।

ओलंपिक में दिलाया पदक का सम्मान तो प्रधानमंत्री ने दिया उपहार

सरकार का यह फैसला टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के कांस्य पद जीतने के बाद एक दिन बाद लिया गया। ज्ञातव्य है कि भारतीय हॉकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में पदक जीता है। इससे पहले भारत ने आखिरी बार ओलंपिक हॉकी में 1980 में पदक जीता था।

हॉकी का जादूगर कहे जाते हैं ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। भारत में यह दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यानचंद ने सिर्फ 16 साल की उम्र में भारतीय सेना जॉइन कर ली थी। वे ड्यूटी के बाद चांद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस करते थे, इसलिए उन्हें ध्यानचंद कहा जाने लगा। उनके खेल की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए। तब एक स्थानीय अखबार ने लिखा, ‘यह हॉकी नहीं, जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।’ तभी से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।

ध्यानचंद ने तानाशाह हिटलर से भी नहीं मानी हार, ठुकरा दिया था ऑफर

जिस जर्मन तानाशाह से दुनिया डरती थी, मेजर ध्यानचंद ने उसके आगे भी हार नहीं मानी थी। वाकया 1936 के बर्लिन ओलंपिक का है जब हॉकी के फायनल में जर्मन टीम को 8-1 से हराया था। हाफ टाइम तक टीम इंडिया 1-0 से ही आगे थी, लिहाजा दूसरे हाफ में जर्मन शारीरिक चोट पहुंचाने पर उतारू हो गए, सबसे खतरनाक साबित हो रहे ध्यानचंद का एक दांत भी इस खतरनाक खेल में टूट गया। इस बीच जर्मन टीम ने एक गोल भी दाग दिया। इसके बावजूद ध्यानचंद ने वापसी की और गोलों की दनादन शुरू हो गई। मैच देख रहा तानाशाह हिटलर आगबबूला होता हुआ मैदान से बाहर चला गया। आखिरकार जर्मन टीम 8-1 से हार गई। हिटलर ने ध्यानचंद को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया और जर्मन टीम का कप्तान बनने साथ ही जर्मन सेना में मेजर बनने और उस जमाने का सबसे महंगे पारिश्रमिक का प्रस्ताव दिया। लेकिन, ध्यानचंद ने अपने देश और परिवार के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए इस पेशकश को ठुकरा दिया।

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