ग्वालियर, 21 जून। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ ने ग्वालियर के अधिवक्ता की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने मध्यप्रदेश के महाधिवक्ता के जरिए सरकार से पूछा है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत के मामले में प्रमाण-पत्र पर बीमारी का उल्लेख क्यों नहीं किया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ जबलपुर में कोरोना से जुड़ी सभी याचिकाओं की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में हो रही है। कोरोना-मृतकों के प्रमाण-पत्रों पर मृत्यु का कारण क्यों नहीं….

विगत दिनों उच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश बोहरे ने एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकार कोरोना-मृतकों का आंकड़ा छुपा रही है। हर जिले से कितने लोगों की कोरोना से मौत हुई है इसका स्पष्ट उल्लेख किया जाए इसके अलावा मृतक के परिवारों को 15-15 लाख रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि ब्लैक फंगस फैलने के लिए औद्योगिक ऑक्सीजन जिम्मेदार है। इसके साथ ही याचिका में मांग की गई है कि प्रदेश के हर जिले में ऑक्सीजन प्लांट जल्द से जल्द लगाए जाएं।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ में सरकार से जानकारी मांगी गई है कि कोरोना से संदिग्ध मरीजों की मौत के मामले में मृत्यु प्रमाण-पत्र पर कारण उल्लेख क्यों नहीं किया जा रहा है। याचिका की सुनवाई में मध्यप्रदेश के महाधिवक्ता के जरिए सरकार को नोटिस दिया गया है कि वह जवाब एक सप्ताह के अंदर ही प्रस्तुत करे।

याचिका में मांगा कोरोना-मृतकों को 15 लाख का मुआवजा, केंद्र सरकार 4 लाख के लिए भी नहीं तैयार  

गौरतलब है कि केंद्र सरकार कोरोना-मृतक परिवारों को चार लाख रुपए की आर्थिक सहायता के लिए अपने हाथ खड़े कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका की सुनवाई में अपना जवाब  केंद्र सरकार ने पेश कर दिया है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता का यह भी आरोप है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में जब अप्रैल-मई में आक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा था, तब सरकार और उसके मंत्री हर जिले में ऑक्सीजन प्लांट जल्द से जल्द लगाने की बात कर रहे थे, लेकिन कोरोना का असर कम होते ही कई जिलों में इसके प्लांट के स्थापन को सुस्ती से काम चल रहा है।

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