चण्डीगढ़, 19 जून। मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया था। सक्रिय एथलीट काल में 80 में से 77 दौड़ें जीतीं, उड़न सिख का सम्मान मिला, किंतु एक अधूरे सपने के अलविदा का फर्राटा भर गए। उड़न सिख मिल्खा सिंह (91) को भी कोरोना महामारी का दानव लील गया। ज्ञातव्य है कि पांच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का भी पोस्ट-कोविड समस्याओं के चलते निधन हुआ था।उड़न सिख का चंडीगढ़ के PGIMER में इलाज चल रहा था। वह चाहते थे कि रोम ओलंपिक में उनके हाथ से चूका पदक उनके देश का कोई एथलीट जीते। वह कहते थे 125 करोड़ की आबादी में से कोई दूसरा मिल्खा तो आए….

मिल्खा सिंह कहते थे, ”सारी दुनिया ये उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेगा। रोम ओलंपिक जाने से पहले मैने दुनिया भर में 80 में से 77 दौड़ें जीतीं थी, जो एक रिकार्ड बन गया था। मैं अपनी गलती की वजह से रोम में मेडल नहीं जीत सका। तबसे मैं इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा इंडियन वो कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई एथलीट ओलंपिक में मेडल नहीं जीत पाया। रायपुर में 4 साल पहले छमिल्खा सिंह ने कहा था– देश की 125 करोड़ की आबादी में से कोई दूसरा मिल्खा सिंह आना चाहिए।

मिल्खा सिंह को थी शिकायत–जितनी मीडिया कवरेज देश में क्रिकेट को एथलेटिक्स को नहीं

मिल्खा सिंह कहते थे कि अगर रोम ओलंपिक में वह मेडल जीत जाते तो आज देश में जमैका की तरह घर-घर से एथलीट्स निकलते। वह रोम में मेडल जीतने से नहीं चूके, बल्कि इस देश को रोल मॉडल और सपने देने से चूक गए थे। पीटी ऊषा और श्रीराम सिंह जैसे एथलीट भी मेडल से चूक गए, जिनसे देश को खासी उम्मीदें थी। अगर हम मेडल जीत गए होते तो एथलेटिक्स के प्रति भी युवाओं में वही आकर्षण होता जो ध्यानचंद के समय हॉकी का और वर्ष 1983 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के बाद क्रिकेट का था। मिल्खा सिंह अक्सर हर मंच से यह शिकायत करते थे कि क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, बावजूद इसके उसे मीडिया की तरफ से ज्यादा कवरेज दी जाती है, लेकिन एथलेटिक्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं, इसके बावजूद देश में एथलेटिक्स को तवज्जो नहीं दी दिया जाता है। एथलेटिक्स के महत्व को हमें समझना होगा। मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमादास से खासी उम्मीदें थी, उन्होंने हिमा को तैयारी के टिप्स भी दिए थे।

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