जोधपुर, 06 अप्रेल। राजस्थान के जोधपुर में फलोदी की सब-जेल से सोमवार रात एक साथ 16 बंदी फरार हो गए। बंदियों के दिन की वजह से बैरकों के आगे खुली जगह में रखा गया था। शाम होने पर इन्हें बैरक में डाला जा रहा था तभी अंदर से बंदियों ने गेट का ताला खोल रहे कॉन्स्टेबल, पास खड़े कार्यवाहक जेलर व एक प्रहरी को धक्का दिया और बाहर भागे। कैदी बाहर पहरे पर तैनात एक और प्रहरी की आंखों में मिर्ची और सब्जी का घोल फेंक दिया, और महिला प्रहरी को उठाकर दूसरी ओर फेंक कर फरार हो गए।CCTV फुटेज से हुआ साफ जेल-ब्रेक की रची गई थी साजिश….

फलोदी जेल से कैदियों के फरार होने का CCTV फुटेज मंगलवार को सामने आया, इसमें साफ नजर आ रहा है कि जेल-ब्रेक साजिश थी, क्योंकि जेल से भागते हुए सभी 16 कैदी पहले से बाहर खड़ी स्कॉर्पियो में आकर बैठे गए थे। इसमें सुरक्षा गार्डों की भी मिलीभगत की आशंका जताई गई है। संदेह के घेरे में आए जेल कर्मी निलंबित कर दिए गए हैं।

जोधपुर की फलोदी सब-जेल ब्रेक की घटना के CCTV फुटे खंगालने के बाद साफ हो गया कि घटना सुनियोजित थी, फरार कैदियों को जेल-ब्रेक का आकस्मिक मौका नहीं मिला। धानबीन पर पता चला कि घटना की सूचना पुलिस-प्रशासन को काफी देर बाद दी गई। इसीलिए जोधपुर और उससे सटे कई जिलों में पुलिस नाकाबंदी और तलाशी काफी देर बाद की जा सकी, और फरार हुए कैदियों को भाग कर छिप जाने का मौका मिल गया। जांच के दौरान प्राथमिक तौर पर दोषी पाए जाने वाले कार्यवाहक जेलर नवीबक्स, गार्ड सुनील कुमार, मदनपाल सिंह और मधु देवी को निलंबित कर दिया गया है। ज्ञातव्य है कि फलोदी जेल-ब्रेक की जांच का जिम्मा जोधपुर रेंज के जेल डीआईजी सुरेन्द्र सिंह शेखावत को दिया गया है।

जेल में तैनात प्रहरियों से मिलेगा साजिश का सुराग

पुलिस जेल में तैनात प्रहरियोंसे पूछताछ कर रही है। जेल से आगे की सड़क में लगे CCTV फुटेज भी खंगाले जा रहे हैं, ताकि कोई सुराग मिल सके, लेकिन खबर लिखे जाने तक पुलिस खाली हाथ थी। माना जा रहा है कि स्कॉर्पियो से भागने के बाद फरार कैदी इससे उतर कर अलग-अलग वाहनों से कच्चे ग्रामीण रास्तों से सुरक्षित ठिकानों पर जा छिपे हैं। भागने वाले ज्यादातर कैदी तस्करी से जुड़े हैं और फलोदी के ही हैं। लिहाजा उन्हें रास्तों की पूरी जानकारी है।

जानिए, क्यों माना जा रहा जेल-ब्रेक को साजिश

  1. इस घटना में जेल में उस वक्त तैनात कर्मियों की मिलीभगत की शंका जताई जा रही है।  घटना के तुरंत बाद कॉन्स्टेबल मदनपाल (वर्दी में) और राजेंद्र गोदारा (हरी टी शर्ट में) चोटिल महिला सिपाही के पास खड़े थे तब दोनों के कपड़े सही थे, लेकिन आधे घंटे बाद जब ये दोनों अफसरों को बयान दे रहे थे, तब इनके कपड़े फटे हुए थे। इन्होंने बंदियों के साथ धक्का-मुक्की की कहानी बयां की है।
  2. जेल के दो गेट हैं। बंदियों को बैरकों में डालने और निकालने के वक्त दोनों में से एक पर ताला होना चाहिए, लेकिन सोमवार को घटना के वक्त बाहरी गेट पर ताला नहीं था। ऐसे में बंदियों के सामने न दीवार फांदने की नौबत आई और न ही कोई हथियार चलाने की। उप-जेल में सिर्फ विचाराधीन बंदियों को रखा जाना चाहिए, क्योंकियह जेल महज़ 40×60 फीट के एरिया में बनी हुई। इतनी छोटी सी जगह में तीन बैरक हैं। साथ ही जेल कार्यालय और कर्मचारी आवास हैं।
  3. जेल में बंदी क्षमता 17 की है, लेकिन जेल में हमेशा ही बंदी क्षमता से ज्यादा रहते हैं। सोमवार को जेल में 60 बंदी थे। जेलर सहित 16 का स्टाफ मंजूर है, लेकिन नियुक्ति 9 की ही है। तत्कालीन जेलर के तीन मार्च को निलंबित होने से यह जिम्मेदारी भी कार्यवाहक के कंधो पर है। वारदात के समय जेल में चार ही कर्मचारी थे, पांच को अवकाश दिया गया था। जेल की सुरक्षा के लिए अलग से स्टाफ की कोई व्यवस्था नहीं है।
  4. फलोदी सब-जेल SDM ऑफिस से 20 फीट की दूरी पर है। उस वक्त SDM यशपाल आहूजा ऑफिस में ही थे, लेकिन कर्मचारियों ने उन्हें वारदात की सूचना नहीं दी। न शोर मचाया और न ही बंदियों का पीछा करने की कोशिश की।

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