ग्वालियर, 25 जनवरी। सिंधिया राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को एक बार मौका मिला था, जब वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती थीं। उन्होंने उस समय विनम्रता से इस पद को ठुकरा दिया, जबकि सभी विधायकों ने उन्हें अपना नेता चुन लिया था।
25 जनवरी 2001 को ग्वालियर रियासत की तत्कालीन राजमाता विजयाराजे सिंधिया का देहांत हुआ था। उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजति स्वारूप khabarkhabaronki.com इतिहास में दर्ज इस रजानीतिक घटनाक्रम का पुनर्स्मरण प्रस्तुत कर रहा है….
मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर की तत्कालीन सिंधिया रियासत का प्रभाव स्वातंत्र्योत्तर काल से ही रहा है। उस समय राजा-महाराजा कांग्रेस के साथ ही खड़े दिखाई देते थे। यह सिलसिला 1967 तक चला। उन्हीं दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में पचमढ़ी में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष अर्जुन सिंह ने युवक कांग्रेस के सम्मेलन का आयोजन कराया. राजमाता सिंधिया भी इसमें आमंत्रित थीं। सम्मेलन में द्वारका प्रसाद मिश्र ने राजे-रजवाड़ों को जमकर कोसा। यह बात राजमाता विजयाराजे सिंधिया को चुभ गई, उन्होंने तत्काल कांग्रेस छोड़ दी, और तय किया कि इस अपमान का बदला जरूर लेंगी।
कांग्रेस में विद्रोह करा दिया राजमाता ने
विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में कांग्रेस विधायक दल में विद्रोह कराकर द्वारका प्रसाद मिश्र को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटवा दिया। उसके बाद विधायक दल ने राजमाता सिंधिया को अपना नेता चुना, लेकिन वे CM बनने को तैयार नहीं हुई, बल्कि उन्होंने गोविंद नारायण सिंह को CM बनवा दिया। हालांकि 1967 में बनी संविद सरकार भले ही 19 महीने ही चली, लेकिन राजनिति के इतिहास यह घटना दर्ज हो चुकी है।
हर विद्रोही विधायक की निगरानी की राजमाता ने
गैर कांग्रेसी सरकार बनाने के लिए जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ दल बदलकर आए कांग्रेसी विधायकों को राजमाता ने एकत्र किया। विधायकों की हर स्तर पर राजमाता ने निगरानी की। पूरे 36 कांग्रेसी विधायकों को राजमाता ने राजधानी भोपाल से लेकर ग्वालियर व दिल्ली तक कड़ी निगरानी में रखा।
कांग्रेस सरकार के 1967 में हुए तख्तापलट से संबंधित कुछ रोचक तथ्य
1967: डीपी मिश्र का भाषण और मुख्यमंत्री चेंबर में मिलने आईं राजमाता विजयाराजे सिंधिया को 15 मिनट इंतजार कराना भारी पड़ा।
- 1967 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में डीपी मिश्र मुख्यमंत्री थे। ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन को लेकर विजयाराजे की मिश्र से अनबन हो गई थी।
- 1967 में ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने थे। टिकट बंटवारे और छात्र आंदोलन के मुद्दे पर बात करने के लिए विजयाराजे पचमढ़ी में हुए कांग्रेस युवक सम्मेलन में पहुंची थीं। इस सम्मेलन का उद्धाटन इंदिरा गांधी ने किया था।
- सम्मेलन में द्वारका प्रसाद मिश्र ने राजे-रजवाड़ों को जमकर कोसा। यह बात भी राजमाता विजयाराजे सिंधिया को चुभ गई थी।
- तथ्यों के मुताबिक पचमढ़ी में डीपा मिश्रा ने विजयाराजे को 15 मिनट तक इंतजार करवाया। राजमाता को यह इंतजार अखरा था। उन्हें लगा कि डीपी मिश्र महारानी को उनकी हैसियत का अहसास करवाना चाहते थे। विजयाराजे के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था।
- राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने छात्र आंदोलनकारियों पर गोलीबारी का मुद्दा उठाया और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ग्वालियर एसपी को हटाने की मांग भी की थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी बात नहीं मानी।
- पचमढ़ी के घटनाक्रम के बाद विजयाराजे ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ दी। वे गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उतरीं और जीतीं।
- चुनाव के बाद 36 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी और विजयाराजे ने इन विधायकों के समर्थन से सतना के गोविंदनारायण सिंह को सीएम बनवा दिया। इसी तरह मध्य प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी और डीपी मिश्र को इस्तीफा देना पड़ा था।