नई दिल्ली। भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने उपलब्धि हासिल की है, जिसमें यह चंद्रमा के सबसे पुराने क्रेटर में से एक पर सफलतापूर्वक उतरा। इसरो और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने मिशन से मिली तस्वीरों का विश्लेषण करने के बाद यह संभावना जताई है। चंद्रमा पर गड्ढों को क्रेटर कहा जाता है, जो अक्सर ज्वालामुखीय विस्फोटों या उल्का पिंडों के टकराव के कारण बनते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान-3 जिस क्रेटर पर उतरा है, वह नेक्टरियन काल के दौरान बना था, जो करीब 3.85 अरब साल पहले का समय है। एसोसिएट प्रोफेसर एस. विजयन ने बताया कि यह स्थल एक अद्वितीय भूगर्भीय स्थान है, जहां पहले कोई अन्य मिशन नहीं पहुंचा है। मिशन के रोवर द्वारा ली गई तस्वीरें चंद्रमा के उस क्षेत्र की पहली तस्वीरें हैं, जो इस अक्षांश पर प्राप्त हुई हैं, और ये चंद्रमा के विकास को समझने में मदद करेंगी।
जब कोई तारा किसी बड़े पिंड की सतह से टकराता है, तो क्रेटर का निर्माण होता है और विस्थापित पदार्थ को इजेक्टा कहा जाता है। विजयन ने इसे एक साधारण उदाहरण से समझाया, जब आप रेत पर गेंद फेंकते हैं, तो रेत का कुछ हिस्सा विस्थापित होकर बाहर उछलता है, ठीक उसी तरह इजेक्टा भी बनता है।
चंद्रयान-3 ने जिस क्रेटर पर उतरने की कोशिश की, उसका व्यास करीब 160 किलोमीटर है और इसके अर्ध-वृत्ताकार संरचना के संकेत मिले हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह संभवतः क्रेटर का केवल आधा भाग है, जबकि दूसरा आधा भाग दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन से निकले इजेक्टा के नीचे दबा हुआ है। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग की थी। जिस स्थल पर यह उतरा, उसे 26 अगस्त, 2023 को शिव शक्ति प्वाइंट नाम दिया गया। इस मिशन के सफल परिणाम ने भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमता को और भी मजबूत किया है और चंद्रमा पर नई खोजों के लिए संभावनाओं के द्वार खोले हैं।