नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह जटिल प्रश्न से जुड़ी याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा कि लेकिन कोई पति अपनी पत्नी को जो नाबालिग नहीं है, यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो क्या उसे अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए?

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं वकील इंदिरा जयसिंह ने सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने बताया कि मामलों में आंशिक रूप से सुनवाई हुई है और सुनवाई के बाद अगले दो दिनों में कार्यों का आकलन किया जाएगा।

सीजेआई ने कहा आज और कल होने वाली सुनवाई से हमें पता चल जाएगा, जिसके बाद हम निश्चित रूप से वैवाहिक रेप मामलों को सूचीबद्ध करने पर विचार करेंगे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई को कानूनी प्रश्न पर याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी। सीजेआई ने संकेत दिया था कि मामलों में 18 जुलाई को सुनवाई हो सकती है। आईपीसी की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ अगर पत्नी नाबालिग नहीं हो, यौन संसर्ग या यौन कृत्य रेप नहीं है। भारतीय दंड संहिता को निरस्त कर दिया गया है और अब उसकी जगह बीएनएस ने ले ली है। यहां तक कि नए कानून के तहत भी अपवाद दो से धारा 63 (रेप) में कहा गया है कि अपनी पत्नी जो 18 साल से कम उम्र की नहीं हो, के साथ यौन संसर्ग या यौन कृत्य रेप नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी के वयस्क होने पर पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करने से संबंधित आईपीसी के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 16 जनवरी, 2023 को केंद्र से जवाब मांगा था। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली ऐसी ही याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। पीठ ने कहा कि हमें वैवाहिक रेप से संबंधित मामलों को सुलझाना होगा। इससे पहले केंद्र ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार को इन याचिकाओं पर अपना जवाब दायर करना होगा।

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