नई दिल्ली। चीन हिंद महासागर इलाके में अपनी नौसेना की मौजूदगी तेजी से बढ़ रहा है। इससे निपटने के लिए भारत ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। विजाग शिप-बिल्डिंग सेंटर (एसबीसी) में बनाई गई 6,000 टन वजनी आईएनएस अरिघात काफी लंबे समय से जारी परीक्षणों के बाद औपचारिक कमीशनिंग के लिए पूरी तरह तैयार है। इन परीक्षणों के दौर में लंबे समय तक अपग्रेड के साथ कुछ तकनीकी मुद्दों को हल किया गया।

हिंद महासागर में चीन की लगातार बढ़ती घुसपैठ से निपटने के लिए भारत ने अब पूरी तरह कमर कस ली है। इसके लिए अपनी पनडुब्बियों के बेड़े को भारत पूरी तरह चाक- चौबंद करने में जुट गया है। भारत में परमाणु ईंधन से चलने वाली और परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियों को बनाने की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है। इन कोशिशों के सफल होने के बाद भारत अपनी दूसरी परमाणु-संचालित पनडुब्बी को चालू करने के लिए पूरी तरह तैयार है। यह पनडुब्बी किसी भी तरह की जंग के लिए परमाणु मिसाइलों से लैस है। इसके साथ ही पारंपरिक हथियारों से लैस दो परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियों को बनाने की परियोजना भी अंतिम मंजूरी के लिए तैयार है।

भारत जल्द ही परमाणु ईंधन से चलने वाली पारंपरिक और गैर-परमाणु हथियारों से लैस 2 पनडुब्बियों को बनाने के प्रोजेक्ट को जल्द ही अपनी मंजूरी दे सकता है। ये दोनो पनडुब्बियां टॉरपीडो, एंटी-शिप और लैंड-अटैक मिसाइलों से लैस होंगी। लगभग 40,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना को बार-बार की जांच और संबंधित कई मंत्रालयें के विचार के बाद अंतिम मंजूरी के लिए अब पीएम की अगुवाई वाली कैबिनेट सुरक्षा समिति के सामने रख दिया गया है। पहले ‘प्रोजेक्ट-77’ के तहत छह ऐसी 6,000 टन की ‘हंटर-किलर’ पनडुब्बियों को बनाया जाना था। बाद में इनकी संख्या को घटाकर केवल 2 कर दिया गया। बताया गया है कि इन 2 मारक पनडुब्बियों को बनाने में एक दशक लगेगा, जो लगभग 95 फीसदी स्वदेशी होंगी। जबकि अगली 4 पनडुब्बियों को बाद के चरण में मंजूरी दी जाएगी। भारत को चीन और पाकिस्तान से दोहरे खतरे से निपटने के लिए कम से कम 18 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों, चार एसएसबीएन और छह एसएसएन की जरूरत है।

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