-संज्ञान ले चुकी है सुप्रीम कोर्ट एक्सपर्ट कमेटी

-जयराम रमेश ने कहा सरकार टकराव खत्म करने कार्रवाई करे

नई दिल्ली। केंद्र सरकार को अडानी की सेबी जांच में सभी हितों के टकराव को ख़त्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करना चाहिए। यह मांग कांग्रेस महासचिव एवं संसद सदस्य जयराम रमेश ने एक बयान जारी करते हुए की है। उन्होंने कहा कि अडानी महाघोटाले की जांच करने में सेबी की आश्चर्यजनक अनिच्छा लंबे समय से सबके सामने है। सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी ने इस पर विशेष रूप से संज्ञान लिया था।

संसद सदस्य व कांग्रेस महासचिव जयराम ने रविवार को एक बयान जारी कर कहा कि अडानी महाघोटाले की जांच करने में सेबी की आश्चर्यजनक अनिच्छा लंबे समय से सबके सामने है। सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी ने इस पर विशेष रूप से संज्ञान लिया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया था कि सेबी ने 2018 में विदेशी फंड्स के अंतिम लाभकारी (यानी वास्तविक स्वामित्व) से संबंधित रिपोर्टिंग की आवश्यकताओं को कमज़ोर कर दिया था और 2019 में इसे पूरी तरह से हटा दिया था। उन्होंने आगे कहा है कि एक्सपर्ट कमेटी के मुताबिक ऐसा होने से प्रतिभूति बाज़ार नियामक के हाथ इस हद तक बंध गए कि उसे गलत कार्यों का संदेह तो है, लेकिन उसे संबंधित विनियमों में विभिन्न शर्तों का अनुपालन भी दिखाई देता है… यही वह विरोधाभास है जिसके कारण सेबी इस मामले में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा है।

कांग्रेस महासचिव जयराम अपने बयान में आगे कहते हैं कि जनता के दबाव में, अडानी मामले में काफी नुक़सान हो जाने के बाद, सेबी बोर्ड ने 28 जून 2023 को सख़्त रिपोर्टिंग नियम फिर से लागू किए। इसने 25 अगस्त 2023 को एक्सपर्ट कमेटी को बताया कि वह 13 संदिग्ध लेन-देन की जांच कर रहा है, फिर भी जांच का कभी कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग रिसर्च के शुक्रवार को खुलासे से पता चलता है कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति ने उन्हीं बरमूडा और मॉरीशस स्थित ऑफ़शोर फंड में निवेश किया था, जिसमें विनोद अडानी और उनके क़रीबी सहयोगियों चांग चुंग-लिंग और नासिर अली शाहबान अहली ने बिजली उपकरणों के ओवर- इनवॉइसिंग से अर्जित धन का निवेश किया था। ऐसा माना जाता है कि इन फंड्स का इस्तेमाल सेबी के नियमों का उल्लंघन कर अडानी ग्रुप की कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए भी किया गया था। यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि बुच की इन्हीं फंड्स में वित्तीय हिस्सेदारी थी। यह माधबी पुरी बुच के सेबी चेयरपर्सन बनने के तुरंत बाद साल 2022 में गौतम अडानी की उनके साथ लगातार दो बैठकों को लेकर नए सवाल खड़े करता है। गौरतलब है कि तब सेबी कथित तौर पर अडानी के लेन-देन की जांच कर रहा था। ऐसे में मांग की जा रही है कि सरकार को अडानी की सेबी जांच में सभी हितों के टकराव को ख़त्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही कांग्रेस महासचिव जयराम सुझाव देते हुए मांग करते हैं कि देश के सर्वोच्च अधिकारियों की जो कथित मिलीभगत इसमें दिख रही है, उसे अडानी महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी का गठन करके ही सुलझाया जा सकता है।

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