जीवन में शिक्षा का अधिकार सर्वोपरि-शिक्षा प्रत्येक बच्चे का अधिकार
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की कार्यशाला में 6 राज्यों ने की भागीदारी
भोपाल : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि आदिकाल से भारत का अपना विशेष चरित्र और आदर्श संस्कृति रही है, इसलिए भारत विश्व गुरु कहलाया। “जियो और जीने दो” के सिद्धांत के साथ सभी के कल्याण की कामना हम करते हैं। हमारी व्यवस्था में गुरु की भूमिका अंधकार से प्रकाश की ओर ले जानी वाली रही है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि जीवन में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि है। किसी भी पद और हैसियत से अधिक महत्व शिक्षा का है। भगवान श्री कृष्ण ने मध्यप्रदेश की धरती पर शिक्षा ग्रहण की और महाभारत के युद्ध के समय वे स्वयं अपनी आत्मा से शास्त्रार्थ करते रहे। गीता के विविध पक्ष हैं। गुरुकुल में प्राप्त शिक्षा से सेनाओं का अपना अनुशासन भी देखने को मिला था। जीवन और मृत्यु अटल है। इसके मध्य का समय मुस्कान और उत्साह के साथ सार्थक जीवन जीने का होता है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने भोपाल के आनंद नगर स्थित टीआईटी एक्सीलेंस कॉलेज में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि आयोग द्वारा महत्वपूर्ण विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई है। राज्य सरकार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रयासों में पूर्ण सहयोग करेगी। यह प्रयास होगा कि कोई बच्चा स्कूल जाना बंद न करे। किन्हीं परिस्थितियों में ड्राप आउट के लिए विवश का शिकार न बने। शिक्षा ग्रहण करना प्रत्येक विद्यार्थी का अधिकार है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परीक्षाओं के पहले विद्यार्थियों से संवाद कर उनका आत्म-विश्वास बढ़ाते हैं। उन्होंने नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा के महत्व में वृद्धि की है। अनेक सुविधाएं विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी भारत में नई शिक्षा नीति लेकर आए। आज अनेक क्षेत्रों में भारत विश्व में अग्रणी है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने यूक्रेन युद्ध के समय प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर भारतीय विद्यार्थियों की रक्षा के लिए उठाए गए कदम का स्मरण भी किया।
अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग प्रियंक कानूनगो ने कहा कि शिक्षा पूरी पीढ़ी को बदलने का कार्य करती है। विपरीत परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाना महत्वपूर्ण है। अभिभावकों द्वारा रोजगार के लिए अन्य राज्यों में जाने पर बच्चों की शिक्षा में बाधा उत्पन्न होती थी। अब अन्य राज्यों में भी हिन्दी में विद्यार्थियों को पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध करवाई जाती हैं। किसी बच्चे के 30 दिन विद्यालय में अनुपस्थित रहने पर इसका कारण ज्ञात कर समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं। कानूनगो ने कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्यमंत्री डॉ. यादव का स्वागत कर उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया। अतिथियों को पौधे भेंट किए गये।
श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि प्रदेश में मजदूरों के हितों का प्राथमिकता के साथ ध्यान रखा जा रहा है। प्रदेश में संचालित आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले वंचित वर्गों के बच्चों को पढ़ाई के लिए सभी संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बनेगा, जहां कोई भी बाल श्रमिक नहीं रहेगा। इसके लिए शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी सभी सरकारी एजेंसी, स्वयंसेवी संगठन और इस विषय के विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी। श्रम मंत्री श्री पटेल ने कहा कि हमारी कोशिश होगी कि वंचित वर्ग और श्रमिकों के बच्चे जो बीच में शाला जाना बंद कर देते हैं उनको पुन: शाला पहुंचाएँ। इस कार्यशाला के माध्यम से 6 राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दादर नगर हवेली-दमन-दीव, गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा के प्रतिभागी शामिल हुए हैं।
कार्यशाला में विषय-विशेषज्ञ और शिक्षा के क्षेत्र के विद्वानों द्वारा शाला त्यागी बच्चों की स्थिति पर चर्चा की गई। साथ ही प्रदेश में स्कूलों से बच्चों के ड्रॉप आउट की प्रवृत्ति को कम करने के संबंध में विचार-विमर्श किया गया। कार्यशाला में अन्य संस्थाओं की भी भागीदारी रही और जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए। अध्यक्ष मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग द्रविन्द्र मोरे और राष्ट्रीय बाल आयोग की सदस्य सचिव रूपाली बैनर्जी, सचिव स्कूल शिक्षा डॉ. संजय गोयल, आयुक्त लोक शिक्षण श्रीमती शिल्पा गुप्ता, श्रम आयुक्त धनराजू एस. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पदाधिकारी, शिक्षा विभाग के अधिकारी और स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।