नई दिल्ली। भीषण गर्मी में दिनभर काला कोट पहनना काफी कठिन होता है। लेकिन इससे वकीलों के ड्रेस कोड पर कोई फर्क नहीं पड़ता,उन्हे हर हाल में तपती दोपहर में भी काला कोट पहनना होता है। इससे वकीलों को सेहत से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। ऐसा न हो इसके लिए वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर गुहार लगाई है कि गर्मी के मौसम में वकीलों के लिए काले कोट और गाउन की अनिवार्यता में छूट होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर एडवोकेट एक्ट 1961 के नियम में बदलाव की मांग की गई है।
जहां तक भारतीय एडवोकेट ऐक्ट की बात है तो जानकारों के मुताबिक भारत में एडवोकेट ऐक्ट 1961 में बनाया गया। इसके तहत यह नियम तय किया गया है कि भारत में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालत के साथ-साथ ट्रिब्यूनल में वकीलों के लिए ड्रेस तय रहेगा। इसके तहत यह नियम तय किया गया है कि जो पुरुष एडवोकेट है वह काले बटन वाले काले कोट, ब्लैक शेरवानी और सफेद बैंड पहनेंगे साथ ही ब्लैक या सफेद पेंट और सफेद शर्ट पहनना अनिवार्य होगा। वहीं, महिला वकीलों को सफेद और काली साड़ी, काले फुल या हाफ स्लीव ब्लाउज, लंबी सफेद और काली स्कर्ट पहनना है।
वकीलों के ड्रेस कोड को लेकर नियम तय है और इसी कारण उन्हें काले कोट, गाउन आदि पहनने होते हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि एक कमिटी का गठन होना चाहिए और कमिटी में मेडिकल एक्सपर्ट हों और इस बात का परीक्षण किया जाए कि गर्मियों में कैसे कपड़े वकील पहनें ताकि उनके काम काज और हेल्थ पर विपरीत असर ना हो। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शैलेंद्र मनी त्रिपाठी ने कहा है कि परंपरागत ड्रेस में छूट दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि देश भर के राज्यों में स्थित बार काउंसिल को निर्देश दिया जाए कि वह बताएं कि उनके राज्य में गर्मी कब होती है ताकि उन महीनों में काले कोट और गाउन से छूट दी जा सके। याचिकाकर्ता ने कहा काला रंग गर्मी को सोखता है और इस रंग के कपड़ों के कारण वकीलों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह सेफ वर्किंग कंडिशन में काम करने के अधिकार का हनन है।