लंदन । चीन की जासूसी के बढ़ते खतरे पर पश्चिम के देशों ने चिंता जताई है। कई सालों से पश्चिमी जासूसी एजेंसियां चीन पर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत पर जोर दे रही हैं। इस सप्ताह ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी के चीफ ने इसे एक गंभीर चुनौती बताया है। ब्रिटेन की ओर से ये ऐसे समय कहा गया है, जब चीन के लिए जासूसी और हैकिंग के आरोप में पश्चिम के कई देशों में गिरफ्तारियां हुई हैं। हांगकांग की खुफिया सेवाओं की मदद का आरोप लगने के बाद ब्रिटेन के विदेश कार्यालय ने चीन के राजदूत को तलब किया था। ये पश्चिम और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के खुलकर सामने आने का संकेत हैं।

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वरिष्ठ अधिकारियों को चिंता है कि अमेरिका और पश्चिम के उसके सहयोगियों ने काफी समय तक चीन की चुनौती को बहुत गंभीरता से नहीं लिया लेकिन अब ये चीन की जासूसी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। पश्चिमी अधिकारियों की चिंता चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दृढ़ संकल्प को लेकर है कि बीजिंग एक नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देगा।

चीनी खुफिया एजेंसी 2000 के दशक में ही औद्योगिक जासूसी में लगी हुई थी लेकिन पश्चिमी कंपनियां आम तौर पर चुप रहती थीं। वे इस डर से इसकी रिपोर्ट नहीं करना चाहते थे कि ऐसा करने से चीन के बाजारों में उनकी स्थिति खतरे में आ जाएगी। एक और बड़ी चुनौती यह रही है कि चीन पश्चिम से अलग ढंग से जासूसी करता है। इससे इसकी गतिविधि को पहचानना और सामना करना मुश्किल है।

अधिकारियों का कहना है कि पश्चिम भी चीन की जासूसी कर रहा है लेकिन चीनी खुफिया जानकारी इकट्ठा करना एमआई6 और सीआईए जैसी पश्चिमी खुफिया सेवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण है। इसकी बड़ी वजह है कि चीन पश्चिमी तकनीक के बजाय खुद की तकनीक का इस्तेमाल करता है। एमआई6 के प्रमुख सर रिचर्ड मूर कहते हैं कि हम जिस प्रतिस्पर्धी से भरी दुनिया में रह रहे हैं, उसमें हमें हमेशा संघर्ष के बारे में चिंता करनी चाहिए और हमें इससे बचने के लिए अपने आप को तैयार करना चाहिए।

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