लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 20 पर बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावाती का यह दांव कांग्रेस और सपा के लिए संकट खड़ा कर सकता है। इसकी एक नहीं कई वजह हैं। सियासी गलियारों में चर्चा इस बात पर है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मुस्लिमों को अपना वोट बैंक मानती है। उन्हे पता है कि ये वोट उनके अपने हैं। लेकिन जब कोई दूसरी पार्टी से मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरता है तो वोट कटने की संभावना बढ़ जाती है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बहुजन समाज पार्टी ने अब तक 70 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। अब 10 ही उम्मीदवारों की घोषणा होनी है। बीएसपी ने अब तक 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है । 18 सवर्ण, 16 ओबीसी और 15 एससी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। एक सिख उम्मीदवार को भी पार्टी ने टिकट दिया है।

टिकट बंटवारे में बसपा सुप्रीमों मायावती ने बेजोड़ जातीय समीकरण साधे हैं। मुस्लिम वोटरों को समाजवादी पार्टी और लोकसभा में कांग्रेस का वोटर माना जाता है लेकिन बीएसपी ने मुसलमानों को इतने टिकट दे दिए हैं कि दोनों पार्टियों के जातीय समीकरणों का दांव फेल होता नजर आ रहा है। टिकटों के बंटवारे में बसपा सुप्रीमो ने हर जाति और वर्ग का ख्याल रखा है। उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म की राजनीति न करने की बातें भले ही पार्टियां कहती आई हों, लेकिन जब चुनाव आता है तो केवल इनकी ही बातें होती हैं। जातीय समीकरणों को देखते हुए ही उम्मीदवारों की घोषणा की जाती है। जहां जिस जाति के ज्यादा वोटर होते हैं, वहां उसी जाति के प्रत्याशी को उतार कर सीट जीतना पार्टियां अपना उद्देश्य बना लेती हैं। राजनीतिक दल उस व्यक्ति पर दांव लगाते हैं जो अपनी जाति के वोटरों को साथ लेकर चुनाव जीतने में सक्षम हों।

बहुजन समाज पार्टी ने अब तक सोच समझकर हर सीट पर प्रत्याशी घोषित किए हैं, जिससे दूसरे दलों के प्रत्याशियों से सीधी टक्कर ली जा सके। बहुजन समाज पार्टी ने हर सीट पर ऐसे प्रत्याशियों का मौका दिया है जो दूसरे दल के प्रत्याशी को सोचने पर मजबूर कर सकें। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने हर सीट पर गुणा गणित लगाने के बाद प्रत्याशियों का चयन किया है। टिकटों का बंटवारा इस तरह किया कि जिससे कोई भी जाति या वर्ग यह न कह सके कि प्रतिनिधित्व के मामले में बहुजन समाज पार्टी ने किसी जाति या वर्ग को दरकिनार किया है। अभी तक जातीय समीकरणों को देखते हुए ही यूपी में प्रत्याशी उतारे गए हैं। बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक सबसे ज्यादा टिकटों के मामले में प्रतिनिधित्व मुस्लिम वर्ग को ही दिया है। पार्टी की तरफ से सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारे गए हैं। इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी है।

इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों को लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी के इस कदम से निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को फायदा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट आपस में डिवाइड हो जाएंगे।बहुजन समाज पार्टी के नेताओं का कहना है कि बसपा ने अपनी रणनीति के तहत प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। बीएसपी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है इसलिए अपने प्रत्याशी के जीत की संभावना के साथ ही टिकट वितरित किए गए हैं। किसी के फायदे व नुकसान से बसपा का क्या लेना-देना? पार्टी के अपने प्रत्याशी खुद चुनाव जीतेंगे और पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी।

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