नई दिल्ली। हाल ही में सरकार की विवादास्पद चुनावी बांड योजना को रद्द करने वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस गवई भी शामिल थे। उन्होंने कहा देश के प्रत्येक अंग को अपने क्षेत्र में कार्य करने की शक्ति है। विधायिका कानून बनाती है। कार्यपालिका उन्हें लागू करने के साथ-साथ प्रशासन चलाती है। न्यायपालिका किसी कानून या संविधान के तहत मुद्दों को लागू करती है, व्याख्या करती है और निर्णय लेती है। उन्होंने कहा कि अदालतों को राज्य के विभिन्न अंगों यानी विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा और निगरानी करनी होती है। संविधान के आदर्शों और प्रावधानों के तहत किसी भी विसंगति की जांच करनी और उसे दूर करनी होती है।उन्होंने आगे कहा, “समय-समय पर सरकार और उसके उपकरण व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले निर्णय ले रहे हैं। इसलिए सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए न्यायिक रूप से कार्य करते हुए निर्णय लेना और भी महत्वपूर्ण है। अदालत कार्यपालिका द्वारा लिए गए निर्णयों की वैधता और संवैधानिकता की जांच कर सकती है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सरकार की नीतियों की समीक्षा करने में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में अगर कार्यपालिका अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहती है तो न्यायपालिका हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकती है। जस्टिस गवई ने हार्वर्ड केनेडी स्कूल में आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए ये बातें कही है।जस्टिस गवई ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को किसी ऐसे कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने का अधिकार है जो किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति को प्रभावित करता है। ऐसे कई ऐतिहासिक मामले हैं जहां सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के साथ असंगत पाए गए कानूनों और विनियमों को रद्द कर दिया है।जस्टिस गवई ने कहा, अभी हाल ही में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह भारतीय संविधान के तहत नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।मई 2025 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले जस्टिस गवई ने कहा, न्यायिक समीक्षा न केवल संवैधानिक सीमाओं को परिभाषित करती है और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि अधिकारों और बदलती सामाजिक गतिशीलता को भी दर्शाती है।जस्टिस गवई ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के प्रावधान के पीछे मुख्य उद्देश्य जांच और संतुलन के लिए एक तंत्र बनाना था ताकि शक्ति का दुरुपयोग न हो। उन्होंने कहा कि नीतिगत बदलाव संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होने की जरूरत है।