श्रीहरिकोटा। अंतरिक्ष शोध में दुनिया को लोहा मनवा चुका इसरो अब इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। इसरो चीफ एस सोमनाथ ने ऐसे संकेत दिए हैं कि इसके लिए वैज्ञानिक अपना काम कर रहे हैं और सफलता भी मिल रही है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि ये सपना 2040 तक हकीकत में बदल सकता है।

चुनौतियां कठिन पर, विश्वस भी है दृढ़ 

इसरो चीफ एस सोमनाथ ने सोमवार को चांद पर इंसान को भेजने की प्रक्रिया में आने वाली चुनौतियों का जिक्र करते हुए बताया कि स्पेस में जीरो ग्रैविटी वातावरण के लिए एक टेक्नोलॉजी साइंस मैप तैयार करना होगा। इन सब प्रयोगों को गगनयान मिशन के जरिए अंजाैम दिये जाने का विचार है। उन्होंने बताया कि इसके लिए कम से कम पांच लोगों को शॉर्टलिस्ट किया जाएगा। गगनयान मिशन के साथ-साथ हमें चांद के मिशन के लिए भी क्षमताओं का विस्तार करना होगा। उन्होंने कहा कि हमारी पहुंच चांद तक भी होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अंत में हम यही चाहते हैं कि साल 2040 तक एक भारतीय व्यक्ति चांद की सतह पर लैंडिंग करे। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि चांद का यह मिशन ऐसे ही अचानक से नहीं होगा और इसे पूरा करने के लिए कई अभ्यास मिशनों से गुजरना होगा। उन्होंने कहा, यह कम खर्च का काम नहीं होने वाला है। इंसान को चांद पर भेजने के लिए। हमें लॉन्चिंग की क्षमता, लैब और सिम्युलेशन सिस्टम विकसित करने होंगे। ये सब एक बार में तैयार नहीं होता है। इसे कई बार करना होगा। इसके बाद ही भारत से चांद के लिए मानव मिशन संभव हो सकेगा।

सोमनाथ अलग-अलग ग्रहों के मिशन पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, जब आप शुक्र ग्रह, उसके एटमॉस्पीयर, सर्फेस टोपोग्राफी, डस्ट, वोल्कैनिज्म, बड़े बादल और बिजली की ओर देखते हैं, तो मुझे ऐसा लगता है कि यह खोज करने के लायक है। ऐसी ही संभावनाएं मंगल पर भी लैंडिंग करने पर हैं। उन्होंने जानकारी दी है कि इसरो चांद की सतह से सैंपल लाने पर भी चर्चा कर रही है। इस दौरान उन्होंने दुनिया के अन्य देशों में जारी चांद पर इंसान को भेजने की कवायद का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, कई अन्य देश भी चांद पर जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका, चीन और अन्य देशों में दिलचस्पी फिर से बढ़ गई है। उन्होंने कहा, हमारे पास स्पेस स्टेशन (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) होना जरूरी है। हमें 2028 तक पहले मॉड्यूल में ऑर्बिट में स्थापित होना है और फुल मॉड्यूल 2035 तक पूरा हो जाना चाहिए, जिसका मतलब इंसान के वहां लंबे समय तक रहने की क्षमता है।

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