बुड़ापेस्ट। कई बार अतंराष्ट्रीय समुदाय की कूटनीति भी बड़ी रोचक दिखाई देती है। कभी तनातनी होती है तो कभी रिश्तों की मिठास का अहसास होता है। तो कभी एक दूसरे के प्रति गुस्से की झलक भी दिखाई देती है। यूक्रेन को यूरोपियन यूनियन की सदस्यता की बात चल ही रही थी कि हंगरी ने आव देखा न ताव यूक्रेन की 55 अरब डॉलर की फंडिग रोक दी। यूरोपीय यूनियन की सदस्यता के लिए बातचीत पर एग्रीमेंट के कुछ घंटे बाद ही हंगरी ने यूक्रेन को बड़ा झटका दिया है। जिस मकसद से सदस्यता के लिए बातचीत शुरू की थी अब यूक्रेन का वो ही मकसद मानो विफल होता दिख रहा है। यूक्रेन को 55 अरब डॉलर की रकम यूरोपीय यूनियन की ओर से दी जानी थी लेकिन हंगरी ने इसे मंजूरी नहीं दी।

यूक्रेन को यरोपीय यूनियन की सदस्यता को लेकर बातचीत को भी जब मंजूरी दी गई तब भी हंगरी की सरकार ने अड़ंगा लगाया था।हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का मानना है कि यूक्रेन अभी यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है, यूरोपीय यूनियन के 27 में से 26 देश यूक्रेन के साथ हैं जबकि हंगरी लगातार यूक्रेन के विरोध पर अमादा है। हंगरी से यह झटका यूक्रेन को तब लगा है जब वह पहले ही फंड की कमी से जूझ रहा है। अमेरिका से यूक्रेन को मदद की उम्मीद है लेकिन वहां भी बातचीत बन नहीं पा रही। रिपब्लिकन पार्टी के ज्यादातर नेता यूक्रेन को और अधिक फंड नहीं देने के पक्ष में हैं। यूक्रेन अब यहां से आगे क्या रास्ता अपनाता है, इस पर दुनियाभर की नजरें होंगी।

विक्टर ओरबान के अड़ंगे के बाद न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट का बयान आया है। उन्होंने कहा है कि हमारे पास अभी भी समय है, अगले कुछ हफ्तों के लिए यूक्रेन के पास इस जंग को लड़ने के पैसे हैं। ओरबान को लेकर हालांकि एक मत यह भी है कि वह यह सब दिखावे के लिए कर रहे हैं। दरअसल वह युक्रेन की सदस्यता को विरोध तो कर रहे हैं लेकिन जब वोटिंग हुई इस मुद्दे पर तो वह समिट रूम से बाहर थे। बहुत से लोगों ने इसे प्री प्लांड माना।

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