त्रिचूर । केरल में लगभग 10000 मंदिर है। यहां की परंपरा के अनुसार जब मंदिर की शोभायात्रा निकाली जाती है। गजराज शोभा यात्रा की शुरुआत करते हैं। लगभग दो सप्ताह पहले गुरुवायूर के पुन्ना थूरकाट्टा में 90 साल के हाथी की मौत हो गई। सालाना शोभा यात्रा में स्वर्णकोलम के बिना धार्मिक यात्रा संपन्न नहीं होती है।

जब से हाथियों को पालतू बनाने में रोक लगी है। उसके बाद से केरल में हाथियों की संख्या में भारी कमी आ गई है। मात्र 412 हाथी यहां पर है।इसमें बुजुर्ग हाथियों की संख्या 50 फ़ीसदी है। इनके ऊपर शोभा यात्रा का बोझ इतना बढ़ गया है,कि बुजुर्ग गजराज इस बोझ को सहन नहीं कर पा रहे हैं। 2022 में यहाँ 434 पालतू हाथी थे। 1 साल के अंदर 22 हाथियों की मौत हो चुकी है। 2018 में यह संख्या 547 थी।
तनाव और गुस्से में हाथी
शोभा यात्रा में काम के तनाव के कारण हाथियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। महावतों को हाथियों को नियंत्रित करने में परेशानी होती है। हाथियों को समय पर चारा पानी भी नहीं मिल पाता है। अधिकांश हाथियों की उम्र 40 साल से ज्यादा है।नए हाथी वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद नहीं मिल पा रहे हैं। जिसके कारण केरल की धार्मिक मान्यताएं प्रभावित हो रहीं हैं।वही शोभा यात्रा के गजराज, काम के बोझ से शोषण का शिकार हो रहे हैं। असमय ही उनकी मौत होने लगी है।

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